Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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कला : १८९
यह समस्व
यह कल्पवृक्ष के
दीवालों से बारह कोठे बने होते हैं जो प्रदक्षिणा रूप से स्थित होते हैं । ४० बीच में अशोक वृक्ष के नीचे सिहासन पर तीर्थंकर विराजमान होते हैं, यह अशोक वृक्ष पार्थिव होता है। इसकी शाखायें बैडूर्म मणि की होती है, यह कोमल पल्लवों में शोभायमान होता है। फूलों के गुच्छों की काम्सि से दिशाओं को व्याप्त करता हुआ अत्यधिक सुशोभित होता है। समान रमणीय होता है, इसके पत्ते हरे तथा सघन होते हैं और यह नाना प्रकार के रत्नों से निर्मित पर्वत के समान जान पड़ता है। तीर्थंकर का सिंहासन नाना रत्नों के प्रकाश से इन्द्रधनुष को उत्पन्न करता है, दिव्य वस्त्र से आच्छा दित होता है, कोमल स्पर्श से मनोहर होता है, तीनों लोकों की प्रभुतास्वरूप तीन छत्रों से सुशोभित होता है, देवों द्वारा बरसाए फूलों से व्याप्त रहता है । भूमण्डल पर वर्तमान रहता है तथा यक्षराज के हाथों में स्थित चमरों से सुशोभित होता है । दुन्दुभि माजों की शान्तिपूर्ण प्रतिध्वनि वहाँ निकलती है ।' सूर्य के प्रकाश को तिरस्कृत करने वाले प्रभामण्डल के मध्य में तीर्थंकर भगवान् विराजमान होते हैं तथा गणधर के द्वारा प्रश्न किये जाने पर धर्मोपदेश देते ६ ।
४०
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जिनेन्द्रालय ४.०९.
यह ॐ के शिखरों से युक्त मन्दिर (बेवालय ) होता था । प्रवेश करते समय इसमें सबसे पहले बाह्य कक्ष मिलता था । ४१० अधिक भीड़ एकत्रित होने पर सम्भवतः लोग यहाँ रुक जाते होंगे। विशेष महोत्सव बावि के अवसर पर भी लोग यहाँ एकत्रित हो जाते होंगे। यह अनेक स्तम्भों से युक्त होता था । ४११ रावण का शान्तिनाथ जिनालय स्फटिक से निर्मित होने के कारण इसमें स्फटिक के खम्भे लगे थे । ४१२ वहां की उत्तमोत्तम वस्तुओं के कारण लोग, 'यह आश्चर्य देखो, यह आश्वर्य देखो' इस प्रकार कहकर परस्पर एक दूसरे को उत्तम वस्तुयें दिखलाते थे । ४१* बाह्य कक्ष के बाद मद्यमण्डप) ४१४ मिलता था । इसे मन्दिर का गर्भगृह कहा जा सकता है । इसकी दीवालों पर जिनेन्द्र भगवान् के मूक चित्र बनाए जाते थे। यहीं सामने जिनेन्द्र प्रतिमायें भी विराजमान होती थीं । जिनेन्द्रालय की ये विशेषतायें ७१वें पर्व में किए गए शान्ति - जिनालय के वर्णन से प्राप्त होती हैं । अन्यत्र वर्णन के आधार पर ज्ञात होता है कि महा
४०६. पद्म० २।१३८ । ४०८. वही, २११५३-१५४ ।
४१०. वही, ७१ । ४७ ।
४१२. वही, ७११४३ | ४१४, वही, ७१।४८
४०७ पद्म० २।१४७-१५२ । ४०९. वही, ९५।३७ ।
४११. नही, ७११४३
४१३. वही, ७१ ४४