Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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कला : १४५
दूसरा मार्ग पहले मार्ग की अपेक्षा
मार्ग की अपेक्षा भी दुगुनी है ।
किसी स्थान को जाने के तीन मार्ग हैं, दुगुना लम्बा है, तीसरे मार्ग की लम्बाई दूसरे एक हो गति से चलने वाले तीन व्यक्तियों में प्रथम व्यक्ति प्रथम मार्ग से लक्ष्म स्थल पर जितने समय में पहुँचेगा, दूसरे मार्ग से चलने वाला उससे दुगुने और तीसरे मार्ग से चलने वाला उससे भी गने समय में स्था अपेक्षा पहले sक्ति के पहुंचने का काल द्रुत, दूसरे व्यक्ति के पहुँचने का काल मध्य और तीसरे व्यक्ति के पहुँचने का काल बिलम्बित होगा । मार्गभेद से लथभेद की मी स्थिति ऐसी ही है। इस लय का उपयोग अक्षर, शब्द या वाक्य में नहीं होता, क्योंकि बोलचाल के समय इनकी जो लय होती है, उसका संगीत से कोई सम्बन्ध नहीं I
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ताल - प्रतिष्ठार्थक 'तल' धातु के पश्चात् अधिकरणार्थक 'व' प्रत्यय लगने से 'ताल' शब्द बनता है, क्योंकि गोत-वाद्य नृत्य ताल में ही प्रतिष्ठित होते हैं लघु गुरु प्लुत से युक्त सशब्द एवं निःशब्द क्रिया द्वारा गीत बाद्य और मूल्य को परिमित करने वाला ताल कहलाया है ।" लघु, गुरु, प्लुत-पांच निमेष या पाँच अक्षरों का उच्चारणकाल भरत वर्णित सालों में लघु या मात्रा कहलाता है, दो लघु एक गुरु का निर्माण करते हैं और तीन लघुकों से एक प्लुत बनता है। ये लघु, गुरु, प्लुत उम्दःशास्त्र या व्याकरण शास्त्र के हस्व, दीर्घ, प्लुत से भिन्न है । २७ गुरु का पर्याय कला भी है, तालभाग को भी कला कहते हैं तथा निःशब्द एवं सशब्द क्रियायें भी कला कहलाती है। तालशास्त्र में लघु का चिन्ह '', गुरु का चिन्ह 'ई' और भरतवणित तालों में प्लुत का भी चिन्ह 'ड' है ।' १८ वाल का स्वरूप स्पन्दन है। कहा गया है कि ताल का अर्थ पद्मचरित में बस्त्र और चतुरस्र ये ताल की
दो
पृ० २४३ ।
संसार की सारी
शिवशक्ति
(ता
=
शक्तियाँ स्पन्दनरूप में हैं ।
शिव, ल - शक्ति)
पृ० ४७५ ।
३७. भरत का संगीत सिद्धान्त पू० २३४ ।
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३८. वही, पृ० २३५ ।
३९. के० वासुदेव शास्त्री : संगीतशास्त्र, पृ० २०६ ।
४०. पं० २४१९ ।
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४०
योनियों कही गई है ।
३४. भरत का संगीत सिद्धान्त,
३५. वही, पृ० २३४ ॥
३६. निमेषाः पञ्च मात्रा स्यात् नाटयशास्त्र ( भरतमुनि ) ० सं०,