Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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कला : १६५
ही आवश्यक नहीं, वरन् नगर के जनपद के साथ सम्बन्ध स्पापन के लिए भी कम उपादेय नहीं है । तीसरे मार्ग-विनिवेषा का परम प्रयोअन दिक्माम्मुख्य वास्तुकला के आयारभूत सिद्धान्त के अनुरूप प्रत्येक वस्ती के लिए सूर्यकिरणों का उपभोग एवं प्रकाशा तथा वायु का स्वच्छन्द सेवन भी कम अभिप्रेत नहीं है । बोये मागों का विनिवेश इस प्रकार हो कि प्रधान मार्ग पुर के मध्य मे जाते हों। प्रधान मार्ग या राजमार्गों पर ही नगर के केन्द्र-भवन, राजहऱ्या, सभा, देवायतन एवं पण्यवीयो (बाजार) निविग्ट किए जाते हैं । पाँच मार्ग-विनिवेश में संचार-सौकर्य के लिए मार्ग की चौड़ाई आदि भी कम अपेक्षित नहीं है। मागों की संख्या कितनी हो, यह पुर पर आश्रित है । १९३ पदमचरित में मार्गघोतक राजमार्ग और रथ्या ये दो माब्द ही मिलते हैं। राजमार्ग उस समय सीधे (कौटिल्यजिता) बनाए जाते थे । ५९४
राजमार्ग का मार्गों में पहला स्थान है। इसका निवेश नगर के मध्य में बताया जाता है । समराङ्गण मे मार रानाग की पौड़ाई -प्रमाण पत्र, मध्य एवं कनिष्ठ त्रिविध पुरप्रभेदों के अनुसार २४, २०, १६ हस्त (३६, ३० २४ फुट) क्रमसः होना चाहिए। इतना विस्तारपूर्ण होना चाहिए जिससे पदातिमों विशेषकर चतुरंगिणी सेना, राजसी जुलूस तथा नागरिकों के सुविधापूर्ण संचार में किसी प्रकार की रुकावट न हो । यह केन्द्रमार्ग पक्का बनाना चाहिए । १५ शुक्राचार्य के अनुसार उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ भेद से राजमागों की चौड़ाई ४५, ३०, २२॥ फुट होनी चाहिए । १६
समराङ्गण सूत्रधार में तीन प्रकार की रथ्यायें बतलाई गई हैं--(१) महारघ्या, (२) रथ्या, (३) उपरथ्या । भादर्शपुर में कम से कम दो महारथ्यायें होनी चाहिए जो पुर के बाहर जनपद महामागों में अनुस्यूत हो जाम । इन दोनों महारध्याऔं की चौड़ाई का प्रमाण १२, १० तथा ८ हस्त (१८,१५, १२ फुट) ज्येष्ठ, मध्यम एवं पुरप्रभेद से क्रमशः मतापा गया है ।११० रम्मा की चौड़ाई राजमार्ग से आधी तथा उपरथ्या की चौड़ाई राजमार्ग से चौथाई होनी चाहिए । ये रथ्यायें एवं उपरण्यायें पुर के आन्तरिक निवेश में सहायक बनती है। ये
१२३. भारतीय स्थापत्य, पु. ८५ । १९४. पन ६।१२१ १९५. भारतीय स्थापत्य, पृ. ८५ । १२६. द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल ; भारतीय स्थापत्य, १०८९ । १९७. वही, पृ० ८५ ।