Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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१५१ : पनवरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति में सात छिद्र रहते हैं। यह छिद्रों के द्वारा रस्सी से बांधा जाता है। मध्यमाग के हाप से कुलुप मामक कोण के द्वारा वादन किया जाता है । ३५
पणिध (तबला)१५-तबले में मृदङ्ग के दो भाग अलग-अलग हैं। दोनों भागों में मुख रहते है। दाहिने भाग में मदम की दाहिनी ओर उत्पन्न होनेवाले शब्द उत्पन्न होते है। बायें में मुबल को बायीं बोर के शब्द बोलते हैं। दाहिना भाग लकड़ी और
बारा से बनादः पाता है | उसरमारत में तबला मृदङ्ग के स्थान में हैं । ११७
घमवाध ताल कास्य धातु से बनाया जानेवाला बाथ घनवाध है । इस धातु को आग में भलीभांति पकाकर पहले 'चक्राकार कर लेते हैं। इस चक्र का मुख सवा दो अगुल का होता है। उसका मध्य भाग मंगल भर नीचा रहता है। उस निम्न देवा के ठीक बीच में एक रंध होता है जिसमें होरा पिरोया जाता है जो उन्नत भाग निम्न प्रदेश को घेरे रहता है । यह सेल मंगुल का बनाना चाहिए, जिससे तालों की स्वनि कानों को अच्छी लगेगी। उसी रंभ में टिका रखने के लिए सूत्र को एक प्रन्थि से अथित करते हैं।
ऐसे दोनों सालों को दोनों हाथों की तर्जनी व अंगूठे के सूत्रों को पकड़कर मजाते है। ध्वनि कम उत्पन्न होती हो तो वह शक्ति है, अधिक होती हो तो यह शिव है। बायें हाथ के ताल से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि अल्प होनी चाहिए । वैसे ही दाहिने हाथ के बाल से उत्पन्न स्वनि धनता से युक्त होनी चाहिए । ऐसे नियम के वादन करने में वादक को अपवमेध का फल प्राप्त होता है। अभ्यपा बादक का अमङ्गल होता है। इन दोनों तालों का देवता तुंघुरु है, अलगअलग रूप में शक्तिसाल का देवता पाक्ति और शिवताल का देवता पिव है। इस वाचताल को बजाने में भी कल्पना होती है, जो अगुलियों को ऊँचा करके धमाने से सिद्ध होती है।
चित्रकला विष्णुधर्मोंसर पुराण के चित्र-सूत्र में कहा गया है कि समस्त कलाओं में चित्रकला श्रेष्ठ है। वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देनेवाली है। जिस गृह में यह कला रहती है वह गृह मांगल्य होता है (तृतीय स्कन्ध ४५१४८) एक
१३५. संगीतशास्त्र, पु० २८० । १३७. संगीतशास्त्र, पृ० २८१ । १३९. संगीतशास्त्र, १० २८२ ।
१३६. प. १७४२७५ । १३८, पद्म २४।२०।