Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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कला : १५७
अत्यन्त महत्वपूर्ण बात यह कही गई है कि नृत्य और चित्र में बना गहरा सम्बन्ध है। मार्कण्डेय मुनि ने कहा था कि नृत्य और चित्र दोनों ही प्रैलोक्य की अनुकृति होती है। महानुत्य में दृष्टि, हाव-भाव आदि की जो भङ्गी बताई गई है वह चित्र में भी प्रयोज्य है, क्योंकि वस्तुतः नृत्य ही परम पित्र है। 'नृत्यं चित्रं परं स्मृतम् । १४० पपरित में स्वर्ण से मिश्रित आसन और सोने के स्थान बनाये जाने का उल्लेख है । जिनेन्द्र भगवान् के चरित्र से सम्बन्धित चित्रपट फैलाने का भी यहाँ उल्लेख किया गया है ।१४२
चित्र के भेद-चित्र दो प्रकार का होता है : १. शुष्क चित्र, २. आवं चित्र।
शुष्क चित्र के भेद-नाना शुष्क और वर्जित के भेद से शुष्क चित्र हो प्रकार का है।
आर्द्र चित्र के भेद-चन्दन आदि के द्रव्य से उत्पन्न होनेवाला पापित अनेक प्रकार का है। कृत्रिम और अकत्रिम रंगों के द्वारा वी, जल तथा मन्त्र आदि के ऊपर इसकी रचना होती है। यह अनेक रंगों के सम्बन्ध में संयुक्त होता है।'५४
सोमेश्वर की अभिलाषार्थ-चिन्तामणि नामक पस्तक में चार प्रकार के चित्रों का उल्लेख है : (१) विद्ध चित्र-जो इतना अधिक बास्तविक वस्तु से मिलता हो कि दर्पण में पड़ी परछाई के समान लगे। (२) अविद्ध चित्रो काल्पनिक होते थे और चित्रकार के भायोल्लास की उमंग में बनाए जाने थे। (३) रस-चित्र जो भिन्न-भिन्न रशों की अभिव्यक्ति के लिए बनाए जाते थे। (४) चू लि-चित्र । पारिस के २८वे पर्व मे सूषित नारद द्वारा श्रीता का सुन्दर चित्र बनाये का उल्लेख मिलता है । इस मित्र को मिड-चित्र कहा जा सकता है, क्योंकि रविषेण ने इसकी विशेषता प्रत्यक्ष के समान (प्रत्यक्षमिव, अर्थात् यथार्थ के समान दिखाई दे, ऐसा) कही है। इस चित्र में अकित महिन सीता को देखकर मामण्डल शीघ्र ही लज्जा, शास्त्रज्ञान तथा स्मृति से रहिट
१४०. प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद हजारीप्रसाद द्विवेदी) पृ. ६४ । १४१. पन ४०।१६।।
१४२. पप २४॥३६ ।। १४३. वही, २४॥३६ ।
१४४. वहीं, २४३६-३७ ।। १४५. हजारीप्रसाद द्विवेदी : प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद, पृ. ६४। १४६. प० २८०१९ ।