Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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१४४ : पनवरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
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भार्गी
४१ नी x रे ग म प ध ४२ नी सा x ग म प ष
४३ नो सा रे x म प ध पोरवी
४४ प नी x रे ग म प ४५ प नी स x ग म प
४६ प नी स रे x म हत्यका
४७ प प नी x रे ग म ४८ प ध नी सx ग म
४९ प प नी स रे x म लय-तालनिया के अनम्तर (अगली तालक्रिया से पूर्व तक) किया जाने वाला विनाम लए कहलाता है।° पदमचरित में लय के इत, मध्य और थिलम्बित ये तीन भेद किए है ।" शीघ्रतम लय द्रुत, उससे द्विगुण मध्य तथा उससे द्विगण विलास पहलाती है। पित्र, वीर रस fan मार्ग विधान्तिकाल के परिणाम में भेद होने के कारण लय के अनेक भेद हो जाते हैं। फलसः क्षिप्रभाव में द्रुत, मध्य, विलम्बित, मध्यभाव में द्रुत, मक्य एवं घिरभाष में दुत. मध्य एवं विलम्बित भेदों का पृथक्-पृथक् रूप होचा है ।१२
सोनों भागों में एक मात्रा का काल पांघ लघु अक्षरों के उच्चारणकाल के समान होता है, तथापि चित्रमार्ग में दस लघु अक्षरों के उम्पारणकाल से परिमित काल के पश्चात् होनेवाली लय गुप्त कहलाती है, वार्तिक मार्ग में बीस लघु अक्षरों के उच्चारण काल के पश्चात् उत्पन्न होनेवाली लय मध्य कहलाती है, दक्षिण मार्ग में बालीस लघु अक्षरों के उच्चारणकाल के पश्चात उत्पन्न होनेवाली लय विलम्बित कहलाती है।" ३०. भरत का संगीत सिद्धान्त, पृ० २४२ । २१, पम० २४।९। ३२. क्रियानन्तरवित्रान्तिलयः स त्रिविधो मतः ।
द्रुतो मध्यो विलम्बश्च द्रुतः शीघ्रतमो मतः । द्विगुणावगुणी शेयौ तस्मान्मष्यघिलम्बितो। मार्गभेदाधिचरमप्रमध्वभावैरनेकधा |
-भरत का संगीत सिद्धान्त, पृ० २४२ । ३३. वही, पृ. २४२ ।