Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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११२ पंचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
सौहार्द प्रकट कराते या मित्रता स्थापित कराते समय हाथ से हाथ मिलाया जाता या । लक्ष्मण ने सिंहोदर और वज्रकर्ण को मित्रता हाथ मिलाकर कराई । १०४५ अपरिचित व्यवित अपना परिचय कुल, गोत्र, माता-पिता का नाम आदि कहकर देता था ।
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बड़ों की आज्ञा मानना तथा उनके प्रति विनय का भाव रखना उस समय के शिष्टाचार का महत्त्वपूर्ण अङ्ग था । जब इन्द्र नाम का राजा रावण से पराजित होकर बन्दी बना लिया गया तब इन्द्र के पिता ने रावण से इन्द्र को छोड़ देने को कहा। इस पर रावण ने उसर दिया है। जिस प्रकार आप इन्द्र के पूज्य हैं, उसी प्रकार मेरे भी पूज्य हैं, बल्कि उससे भी अधिक । इसलिए मैं आपकी आज्ञा का उल्लंघन कैसे कर सकता हूँ ? यदि यथार्थ में आप जैसे गुरुजन न होते तो यह पृथ्वी पर्वतों से छोड़ी हुई के समान रसातल को चली जाती । आप जैसे पूज्य पुरुष मुझे आशा दे रहे हैं अतः में पुण्यवान् हूँ । आप जैसे पुरुषों की आशा के पात्र पुण्यहीन मनुष्य नहीं हो सकते । इसलिए हे प्रभो ! आप विचार कर ऐसा उसम कार्य कीजिये जिससे इन्द्र और मुझमें मोहाई उत्पन्न हो जाय 1 इन्द्र सुख से रहें और मैं भी सुख से रहें। यह शक्तिशाली इन्द्र मेरा चौथा माई है, इसे पाकर मैं पृथ्वी को निष्कंटक करूँगा । आप जिस प्रकार इन्द्र को आशा देते हैं उसी प्रकार मुझे करने योग्य कार्य की आज्ञा देते रहें, क्योंकि गुरुअनों की आज्ञा हो शेषाक्षत की तरह रक्षा करने वाली हैं। आप इच्छानुसार यहाँ रहें या रथनूपुर रहें अथवा जहाँ इच्छा हो वहां रहें। हम दोनों आपके सेवक है । हमारी भूमि हो कौन है २१०४७ बड़ों को माशा मानने का दृष्टान्त राम द्वारा दवारथ की आशा स्वीकार करने १० तथा लक्ष्मण द्वारा राम की आज्ञा माने जाने इत्यादि अनेक प्रसंगों में मिलता है ।
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वड़ों को बिदा करने के लिए कुछ दूर तक उनके साथ जाने की परिपाटी थो । १०४९५०५० नदी या तालाब तक पहुँचाना शुभ और परम्परानुकूल माना जाता था । राम ने करवा नदी के तट पर पहुँच अनेक आगन्तुक राजाओं आदि को समझा-बुझाकर लौटा दिया । १०५५ जो लोग नहीं लौटे थे उन्हें लौटाने का यत्न किया। १०५२ कसं व्यशील राजा के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मानना प्रजा अपना कर्तव्य समझती थी। राम- धन-गमन के समय लोग राम-लक्ष्मण के साथ जाने
१०४५. पद्म० ३३।.३०७ ।
१०४७. वही, १३१४-२१ । १०४९. वही, १३०३२ ।
१०५१. वही ३२ ४०
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१०४६, पद्म० ५३५१ ।
१०४८, बड़ी, ३११२४, १२५ । १०५०. बही, ३२१४०
१०५२, वही, ३२ ३०, ४१