Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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मनोरंजन : ११९
की लताओं से लिपटे दश वेमा प्रमाण लम्बे-लम्बे वक्ष थे २९ उसके ऊपर उपद्रवरहित गमनागमन से युक्त समय नाम का पोरा तान ! निशा कहीं हावभाव धारण करने वाली स्त्रियाँ तथा कहीं मनुष्य रहते थे।३० उसके ऊपर चारणप्रिय नाम का पांचवां मनोहर वन या जिसमें चारण ऋविधारी मुनिराज स्वाध्याय में वस्पर रहते थे।" उसके ऊपर छठवा निबोष नाम का उद्यान था जो ज्ञान का निवास था। उसके आगे चढ़कर प्रमद नाम का सातवा उद्यान पा जो घोड़े की पीठ के समान उत्तम तथा सुख से चढ़ने योग्य सीदियों से दिखाई देता था ।२२
प्रमद वन में स्नानक्रीड़ा के योग्य कमलों से सुश भित मनोहरवापिकायें थीं। स्थान-स्थान पर पानीयशालायें तथा अनेक खण्डों से युक्त सभागृह ये 14 वहाँ खजूर, नारियल, ताल तथा अन्य वृक्षों से घिरे एवं फलों से लदे नारंग और बीजपूर आदि के वृक्ष थे । उस प्रमदवन में वृक्षों को सब जातियाँ यो । ४ यहाँ मन्द-मन्द वायु से नुस्य करती हुई वापिकायें राजहंस पक्षियों के समान ऐसी जान पड़ती थी मानो कोकिलाओं के आलाप से युक्त सघन वनों की हंसो हो कर रही हों। उसमें अशोकमालिनी नाम की वापी थी जो कमलपत्रों से सुशोभित तथा स्वर्णमय सोपानों से युक्त और विचित्र आकार वाले गोपुरों से अलंकृत पी। इसके अतिरिक्त वह उद्यान झरोखे आदि से अलंकृत उत्तमोत्तम लताओं से आलिगित मनोहर गृहों तथा जलकणों से युक्त निझरों से मुशोभित
___उपर्युक्त वर्णन के आधार पर उत्तम उद्यान में हम निम्नलिखित विशेषतामें पाते है
२९. १५० ४६।१४७-१४८ । ३०. पम: ४६।१४९ । ३१. वही, ४६।१५० । । ३२. वही, ४६।१५१ । ३३. वही, ४६।१५२ । १४. नारजमातृलिलाधैः फलैर्यच निरन्तराः ।
खर्जूरेालिकेरैश्च तालेरन्यश्च पेष्टिताः ॥ पप ४।१५३ । वत्र च प्रमखोघाने सर्वा एवागजातयः ।
कुसुमस्तवकैछाना गीयन्ते मत्तषट्पदैः ।। पप० ४।१५४ । ३५. अशोकमालिनी नाम पत्रपविराजिता ।
वापीकनकसोपाना विचित्राकारगोपुरा ॥ पप० ४।१६० । ३६. मनोहरगृहाति गवाक्षाद्युपशोभितः ।
सल्लवालिङ्गितप्रान्तनिरिश्च ससीकरः ।। पप० ४१६१ ।