Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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मनोरंजन : १२३
अल्पकाल तक ही ठहरने वाला है परन्तु सत्पुरुषों की माया से जो यश उत्पन्न होता है वह जब तक सूर्य, चन्द्रमा और तारे रहेंगे, तब तक रहता है । जो मनुष्य सज्जनों को आनन्द देने वाली मनोहारिणी कथा करता है वह दोनों लोकों का फल प्राप्त करता है ।"५ मनुष्य के जो कान सत्पुरुषों की कथा का श्रवण करते हैं, मैं उन्हें ही कान मानता हूँ, बाकी सो बिदूषक के कानों के समान केवल काम का आकार पारस करते है । रासुका का पंडा का वर्णन करने वाले वर्ण अक्षर जिस मस्तक में घूमता है वहीं वास्तव में मस्तक है, बाकी सो नारियल के करक (कड़े आवरण) के समान है ।११ जो जिह्वा सत्पुरुषों के कीर्तनरूपी अमृत का स्वाद लेने में लीन है, उसे ही में जिह्वा मानता है, बाकी तो दुर्वचनों को कहने पालो छुरी का मानो फलक हो है । पर श्रेष्ठ ओंठ के हो हैं जो महापुरुषों का कीर्तन करने में लगे रहते है, बाकी तो शम्बूक नामक कन्सु के मुख से मुक्त जोक के पृष्ठ के समान ही है ।१ दात वही है जो शान्त पुरुषों की कथा के समागम से सदा रंजित रहते है, उसी में लगे रहते है, बाकी तो कफ निकलने के द्वार को रोकने वाले मालो आवरण ही है । मुख वही है जो कल्याण की प्राप्ति का प्रमुख कारण है और श्रेष्ठ पुरुषों की कथा कहने में सदा अनुरक्त रहता है बाकी तो मल से भरा एवं दन्तरूपी कौड़ों से व्याप्त मानो गड्ढा ही है । जो मनुष्य कल्याणकारी वचनों को कहता अथवा सुनता है वही मनुस्य है, बाकी सो शिल्पकार के द्वारा बनाए हुए मनुष्य के पुतले के समान हैं।" उसम कथा के सुनने से मनुष्यों को जो सुख प्राप्त होता है वह कृती लोगों का स्वार्थ (आत्मप्रयोजन) कहलाता है तथा यही पुण्योपार्जन का कारण है।
कथा के भेद-कथा चार प्रकार की होती है : आक्षेपणी, निक्षेपणी, संवैजनी तथा निवेदनी ।
आक्षेपणो यह कथा जिसके द्वारा अन्य मत-मतान्तरों को बालोचना की जाती है।
निक्षेपणी-वह कथा जिसमें तत्य का निरूपण किया जाता है ।
५८. पप. १।२५ । ६०. वही, १०२८ । ६२. वही, १।३०। १४. वही, १३२ । ६६. वही, ११३४॥ ६८. वही, १०६।९२ ।
५९. पयः ११७०। ६१. वही, १।२९ । ६३. बही, १३१ । ६५. वही, १।३३। ६७, वही, २३५ । ६९. वही, १.६।१२।