Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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मनोरंजन : १३३
कोई नाना प्रकार के सुगन्धित पदार्थ पीसता ।५५ कोई अत्यन्त सुन्दर वस्त्रों से जिनमन्दिर के द्वार की शोभा करसा तया कोई नाना धातुओं के रस से दोवालों को अलंकृत करता ।'३१ इसके बाद उत्तमोत्तम सामग्रियों को एकत्रित कर तुरही के विशाल शब्द के साथ जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक किया जाता । व्रत करने वाला व्यक्ति सहज और कृत्रिम पुष्पों (स्वर्ण, दी तथा मणिरत्न से निर्मित कमलों आदि) से महापूजा करता था । १३९ इसके बाद सब लोग गन्धोदक मस्तक पर लगाते थे। इस अवसर पर उत्तमोत्तम मगाड़े, तुरहो, मुर्दग, शंख तथा काहल आदि वादिनों से मन्दिर में विशाल शव होता था। ४० कहों नाही पर बड़ी धूमधाम से नगर में जिनेन्द्र भगवान् का रथ भी निकलवाया जाता था ।१४१ इन दिनों समस्त पृथ्वी पर राजा की ओर से जीवों के मारने का निषेध रहता था।४२ यदि दो राजाओं में युद्ध हो रहा होता तो दोनों पक्ष के लोग युद्ध से विरत रहते थे ।१४१
मवनोस्सव'४४ मदनोत्सव चैत्र शुक्ल द्वादशी को प्रारम्भ होता था। उस दिन लोग व्रत रखते थे । अशोकवृक्ष के नीचे मिट्टी का कलश स्थापन किया जाता या । उसमें सफेद चावल भर दिले जाते थे। नाना प्रकार के जल और त विशेष साप से पूजोपहार का काम करती थी। फलश को सफेद वस्त्र से ढक दिया जाता था और श्वेत पन्दन छिड़का जाता था। कलश के ऊपर एक ताम्रपत्र रखा जाता था और उसके ऊपर कवलोदल बिछाकर कामदेव और रति की प्रतिमा बनाई जाती थी। नाना भांति के गंध-पूर और नत्यन्वाध से कामदेव को प्रसन्न करने का प्रयल किया जाता था। इसके दूसरे दिन अर्थात् चैत्र शुक्ल प्रयोदशी को भी मदन को पूजा होती थी और सुसज्जित भाव से स्तुति की जाती थी। चैत्र शुक्ल चतुर्दशी की रात को केवल पूजा ही नहीं होती थी, नाना प्रकार के अश्लोल गान भी गाये जाते थे और पूर्णिमा के दिन छककर उत्सव मनाया जाता १३५. वासयत्युदकं कश्चिद्रबयत्यपरः क्षितिम् ।
पिनष्टि परमान् गम्घान् कश्चितहुविधच्छबोम् ॥ पद्म २९।४ । १३६. द्वारशोभा करोत्पन्यो वासोभिरतिभासुरैः ।।
नानाषातुरसैः कश्चित्कुरुते भित्तिमण्डनम् ।। पन० २९।५ । १३७. पप० २९३७ ।
१३८. पप० २९६८। १३९. वही, २९११० ।
१४०, वही, ६८।१९। १४१. वही, ८।१८४ ।
१४२. वही, २२१२३५ । १४३. वही, ६८।२ ।
१४४. वही, ४७११४० ।