Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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मनोरंजन : १२९
४--सिंहनाद करना। ५-विकिया से अनेक वेष बनाना । ६-उत्कृष्ट गाना गाना ।
इसके पश्चात् कुबेर नगरी की रचना करता है। उस नगरी को विशाल फोट, परिखा सपा के चे-ऊंचे गोपुरों के शिखरों से युक्त किया जाता है । १०९ पश्चात् इन्द्र देवों के साथ नगर को प्रदक्षिणा कर इन्द्राणी के द्वारा प्रसूतिकागृह से जिन बालक को बुलवाता है ।११० सौधर्मेन्द्र भगवान को गोदी में बैठाता है । अन्य देव छत्र, चमर आदि ग्रहण करते हैं। बाद में सुमेरु पर्वत की पाटुकशिला पर विशाल कलशों से भगवान् का इन्द्रादि देव अभिषेक करते हैं । पश्चात् इन्द्र उन्हें वस्त्राभूषणों से सज्जित कर स्तुति करता है। इसके बाद वह अन्य देवों के साथ अपने स्थान को चला जाता है । इस अवसर पर देवों द्वारा की गई क्रियाओं के कुछ रूप निम्नलिखित हैं :
१-तुम्बु, नारद और विश्वावसु का उत्कृष्ट मूच्छंना करते हुए अपनी पत्नियों के साथ मन और कानों को हरण करने वाले गीत गाना ।
२-लक्ष्मी का वीणा बजाना । ३.... उत्तमोत्तम देवों का गायन, वादन मोर नस्य करना । ४-देवियों का गन्ध से युक्त अनुलेपन में मस्याम् की उर्तन करना ।
५-भावान् के शरीर को उत्तमोत्तम वस्त्राभूषणों तथा धिलेगनों से सज्जित करना।
दक्षा-महोत्सव (दीक्षाकल्याणक)-किसी कारणवश सीर्षङ्कर को जब विराग हो जाता है और वे दीक्षा लेने को उद्यत होते हैं नव लोकान्तिक देघ आकर अनुमोदन करते हैं । १२ पश्चात् उत्तम पालको पर सवार हो भगवान् घर से बाहर निकलकर उद्यान आदि रमणोक स्थान में पहुँचते हैं ।११३ उस समय भागों को अनसनाहट और नृत्य करते हुए देवों के प्रतिध्वनिपूर्ण शम्द से तीनों लोकों का अन्तराल भर जाता है । १४ ॐ नमः सिद्धम्यः' कहकर भगवान् दीक्षा लेकर मुष्टियों से केशल चन करते हैं। इन्द्र उन केशों को रत्नमयी पिटारे में रखकर औरमागर में निक्षिप्त करता है। उस प्रकार समस्त देव दीक्षाकल्याणसम्बन्धी उत्सब मनाकर यथास्थान चले जाते है ।" १०९. पा. ३।१६९,१७० । ११०. पन० ३.१७३ । १११. वही, ३।१७३, २१२ । ११२, मही, ३।२६३, २७४, २६८ । ११३. वही, ३।२५५-२७८, २८०१ ११४. वही, ३।२७९ । ११५. वही, ३१२८३, २८४ । ११६. वही, ३१२८५ ।