Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
१२. : पनवरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
१. अधिकांश जातियों के वृक्ष । २. अनेक विशेषताओं वाली वापो (सरोवर, मवी आदि)। १. लक्षागृह । ४. मनोहर गृह, आवास मादि । ५. पानीयशाला तथा स्नानगृह आदि । ६. कोकिलादि पक्षियों का कलरव । ७. उत्तमोसम झरने । ८. पहाड़ी प्रदेश । पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए सीड़ी आदि का निर्माण ।
भूत-कोड़ा प्राचीन साहित्य के मनोविनोद में छूत का स्थान था। पद्मपरित में धूत को कला के रूप में स्वीकार किया गया है ।" ब्राह्मण भी उस समय जुआ खेलते थे । लक्ष्मण को अपना परिचय देते हुए सदभूति कहता है--"मैं कौशाम्बी नगरी के विश्वानल नाम के पवित्र ब्राह्मण की स्त्री प्रतिसन्ध्या से उत्पन्न पुत्र हूँ तथा शस्त्र और जुए की कला का पारगामी हूँ।"३८ इसी प्रकार ८५वें पर्व में शकुना पाह्मणी के पुत्र मृदुमति का वर्णन करते हुए कहा गया है कि जुए में सदा जीतता पा, बस्यन्त चतुर था, कलाओं का घर था और कामोपभोग में सदा आसक्त रहता था । इस तरह वह नगर में सदा कोड़ा किया करता था। चूत को कला के रूप में इस प्रकार स्थान देते हुए भी पप्रचरित में इसकी गणना दुष्ट चेष्टाओं में की गई है।
पोला-विलास पनपरित के षष्ठ पर्व में लंका के राजा विद्युस्केश की क्रीड़ाओं का वर्णन करते हुए कहा गया है कि राजा विधुरकेश उन बेशकीमती झूलों (दोलामु) पर समसा था जिसमें बैठने का अच्छा भासन बनाया गया था, ओ ऊंचे पक्ष से बेथे थे तथा जिनकी उछाल बहुत लम्बी होतो पो ।' ३९वें पर्व में राम-लक्ष्मण द्वारा दन में किसी वृक्ष पर लटकती लता पर सोता को बैठाकर बगल में दोनों बोर खड़े हो सीता को झुला झुलाने का उल्लेख है।४२ एक स्थान पर दशानन के साथ क्रीड़ा करती हुई कन्याओं की मनःस्थिति का चित्रण करते हुए कहा गया है कि उस अपूर्व समागम के कारण उन कन्याओं का कामरूपी रस लग्मा
३७, पद्मा ३४१७८, ८५११२९ । ३१. वही, ८५।१२९ । ४१. वही, ६।२२९ ।
३८. पर. ३४१७६-७८ । ४०. वही, ८५।१२० । ४२. वही, ३९।४।