Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 121
________________ सामाजिक कावस्था : १०९ देना, ९८९ हाथ जोड़कर नमस्कार करमा,११० चरणवन्दना ९१. तथा जयजयकार करना,१५२ ये सब सम्मान प्रकट करने को शैलियां थीं। आलिंगन करने की उस. समय परम्परा थी। आलिंगन वास्तविक सौहार्द्र का प्रतीक माना जाता था। जिस समय दशानन आदि तीनों भाइयों का राज्याभिषेक हुआ उस समय आनन्द से व्याप्त नेत्रों वाले माता-पिता ने प्रणाम करते हुए दशानन आदि के शरीर का चिरकाल तक स्पा किया ।१९६ अति चिरकाल तक जीत रहो (जोवतातिचिरं कालम्) २२४ ऐसा कहकर सुमाली, माल्यवान्, सूर्यरज, ऋक्षरज और रत्नश्रवा आदि गुरुजनों मे स्नेहवश उनका बार-बार आलिंगन किया (आलिलियु: पुनः पूनः) १९५। रत्नजटी विद्याधर ने राम को रावण द्वारा सीता के हरे जाने की सूचना दी तब सूचना-प्राप्ति के कारण हर्षित हो नाना प्रकार के स्नेह को धारण करते हुए राम ने आदर में रत्ननटी के साप अपने शरीर का स्पर्श दिया ।१९ राम बार-बार आलिंगन कर उससे समाचार पूछते थे और वह हर्ष से स्खलित हए अक्षरों में बार-बार उक्त समाचार सुनाता था ।९५७ हनुमान् द्वारा युद्ध में पकड़े जाने पर मातामह महेन्द्र ने उसका मस्तक सुंघा और रोमांचित हो उसका आलिंगन किया।९९८ इन को प्रस्थान करने के बाद राम-लक्ष्मण जव अरजिनेन्द्र के मन्दिर में ठहर गए तब उनकी मातायें तत्काल दौड़ी आयीं। आसुओं से युक्त हो उन्होंने बार-बार पुत्रों का आलिंगन किया और बार-बार उनके साथ मन्त्रणा की। राम का वनगमन जानकर भरत छह दिन में ही राम के पास पहुंच गया । वह घोड़े से उतर पड़ा और जहाँ से राम दिखाई दे रहे थे उतने मार्ग में पैदल ही चलकर उनके समीप पहुँच गया तथा उनके चरणों का आलिङ्गन कर मूच्छित हो गया । १००० पति-पत्नी के आलिङ्गन के अनेक प्रसङ्ग पपंचरित में मिलते हैं 100 इस प्रकार परित में परम्पर आलिङ्गन के अनेक उदाहरण है। इन सबमें मन ९८९, पद्म० १७.१२३ 1 ९९०. पन० १७१२३ । ९९१. वही. ७३६७ । ९१२. वहीं, २११८५ । ९९३, सवेपथुकरेणैषां गावस्पृश्यता चिरम् । पितगे सत्रणामानामानन्दाम्याकुलेमणो । पन० ७।३५८ । ९९४. पचर ।३६८। ९९५. पन ७।३६९ । ९९६. अंगस्पर्ण ददौ सर्व सादरं रत्नफेणिने ।। पद्मा ४८६९६ । १९७. पद्म० ४८१९८ । ९९८, मजिनमस्तके मदं पुलकी परिषस्वजे ।। पद्म ५०६४५ । ९९९. पद्मा ३३२३१ । . १०००. पप ३२०११८ । १००१. यहो, १६।२८३, १८४, १८५, २२९, ७३३१५२-१५३, ५४॥१५ ।

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