Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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१०८ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
समय वन में रहने वाले वापस भी अतिथि सत्कार करने में अपना गौरव अनुभव करते थे । १५ राम, लक्ष्मण और सीता के साथ जब तापसों के एक सुन्दर आश्रम में पहुँचे तब उन तापसों ने विभिन्न प्रकार के मधुर फल, सुगन्धित पुष्प, मोठा जल, आदर से भरे स्वागत के शब्द, अर्ध्य के साथ दिए गये भोजन, मधुर संभाषण, कुटी कार कोमल की अय्यर आदि धकावट को दूर करने वाले उपचार से उनका बहुत सम्मान किया । ९७३ अतिथियों के लिए अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु देने में लोग संकोच का अनुभव नहीं करते थे । एक बार जब लक्ष्मण वर्ग के यहाँ गए तब कर्ण ने आओ ! शीघ्र प्रवेश करो, कहकर उनको प्रवेश कराया । ९७७ लक्ष्मण भी सन्तुष्ट होकर विनीत वेष १७८ में उनके पास गया। वञ्चकर्ण ने विश्वस्त पुरुष से कहा - " जो अन्न मेरे लिए तैयार किया है वह उन्हें शीघ्र आदर के साथ खिलाको ।' उस समय के लोग अपने से बड़ों का विशेष ध्यान रखते थे । लक्ष्मण ने वाकणं को उत्तर दिया कि "मैं यह भोजन यहाँ नहीं करूंगा । पास हो में मेरे अग्रज ठहरे हुए हैं, पहले उन्हें भोजन कराऊँगा, इसलिए मैं यह अन्न उनके पास ले जाता हूँ १८० एवमस्तु कहकर राजा ने उन्हें उत्तमोत्तम बहुत अन्न दिया । वह भोजन इतना मधुर था कि उससे सन्तुष्ट होकर राम ने कर्ण की महत्ता की सराहना की। साथ ही यह भी कहा कि ऐसा सुन्दर भोजन तो जमाई के लिए भी नहीं दिया जाता । १०२ इस अमृततुल्य अन्न के खाने से हमारा मार्ग से उत्पन्न हुआ गर्मी का अम एक साथ नष्ट हो गया है । १६ इस प्रकार उन्होंने इस भोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा की । १८४
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व्यंजनों से युक्त
बड़ों का अभिवादन करना उस समय के शिष्टाचार का एक अङ्ग था । शुकाकर बड़ी विनय से चरणों में अर्ध्यादि की भेंट
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नमस्कार करना, '
सिर देना, १८६
हाथ जोड़कर प्रणाम करना,
बन्दना करना,
तीन प्रदक्षिणा
९८७
१८५
९८८
१७६. पद्म० ३३८, ११
९७५ पद्म० ३३।१०।
९७७. वही, ३३।१९३ ।
९७८. विनीतवेष सम्पन्नो वीक्षितं सादर नरः । पद्म० ३३११९४ ।
९७९ १० ३३ । १९५ ।
९८१ षही, ३३११९७ । ९८३. वही, ३३२०१ ।
९८५. वही, ८।३९५ । ९८७. वही, १६७१ ।
९८६. वही ९८८. वही,
९८०. पद्म० ३३।१९९६ १
९८२. बही, ३३।१९९, २०० ।
९८४, वही,
३३।२०२-२०४ ।
१८०२० ।
१७।१४७ ।