Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
सामाजिक व्यवस्था ७९
का वर्णन करते हुए कहा है-उसने अपने कानों में बालियाँ पहन रखी थीं । उनको प्रभा से वह ऐसी जान पड़ती यो मानो सफेद सिन्दुबार (निर्गुण्डी) की मंजरी ही धारण कर रही हो । ४१४
-
तलपत्रिका – कान में पहनने का दांत से निर्मित एक आभूषण जिसे पुरुष एक कान में पहनता था । पद्मचरित में इसे महाकान्ति से कोमल ( महाकान्ति कोमला ) कहा गया है । ४५ शब्दों का
४९५
इनके अतिरिक्त पद्मचरित में कर्णभूषण
तथा कर्णाभरण*
भी प्रयोग कानों के आभूषण के अर्थ में हुआ है ।
४६६
कण्ठाभूषण
*
का उल्लेख किया गया है ।
४३९
४७१
४७२
हार -- पद्मचरित में अनेक स्थलों पर हार रावण के पिता के पास ऐसा हार था जिसकी नागेन्द्र रक्षा करते थे । वह हार अपनी किरणों से दसों दिशाओं को प्रकाशमान करता था 1४७० उस हार में बड़े-बड़े स्वच्छ रत्न लगे थे । उन रत्नों में असली मुख के सिवाय नो सुख और भी प्रतिबिम्बित होते थे। रावणका दशानन नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि उसके असली मुख के सिवाय नो सुख और भी प्रतिबिम्बित होते थे । इस हार की हजार नामकुमार रक्षा करते थे । माला को भी हार कहते थे । मोतियों की बनाई हुई माला को भुक्ताहार कहते थे । मुक्तामाला भी मिलता है। हार की दीप्ति से लोग बहुत आकर्षित थे । एक स्थान पर हार का नाम स्वयम्प्रभ बतलाया गया है। इस हार को यथाधिप ने प्रसन्न होकर राम को दिया था। हार प्रायः रत्नों मा मणियों से गूँथे जाते थे । रामायण में हारों को चंद्ररश्मियों की-सी कान्तिवाला (चन्द्रांशु किरणामा हारा: ५।९ ४८ ) बतलाया गया है ।
४७३
इसकी दूसरा नाम
४७५
४७६
४६४. कर्णयोलिकालोकान्मुक्ता फलसमुत्थितात् ।
सितस्य सिन्दुवारस्य मञ्जरीमिव बिभ्रतीम् । पद्म० ८७१ ।
४६६. पद्म० ३।१०२ ।
४६५. पद्म० ७१ । १२ ।
४६७, वही, १०३ । ९४ ।
४६८. वही ८५१०७, ८८ ३१, १०३९४ ७ २२१, ७२१८, ७२१५,
३ ।२७७ ।
४६९. पद्म० ७।२१९ ।
४७० पद्म० ७।२२१ ।
४७२. दही, ७।२१५ ।
४७१. बही, ७/२२२ । ४७३. वही, ३१२७७ । ४७५. वही, ३६ | ६ |
४७४. वही, ७१।२ ।
४७६. शान्तिकुमार नानूराम व्यास रामायणकालीन संस्कृति, पु० ६०