Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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८८: पचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
से युक्त हो गई थी ।५४९ प्रसन्न होकर किसान लोग हम प्रकार कहने लगे कि हम लोग बड़े पुण्यात्मा है, जिससे रावण इस देश में आया । ५५० अब तक हम खेती में लगे रहे, हम लोगों का सारा शरीर रूखा-सूखा हो गया, हमें फटेपुराने वस्त्र पहिनने को मिले, कठोर स्पर्श और तीव-वेदना से युक्त हाथ-पैरों को धारण करते रहे और आज तक कभी सुख से अच्छा भोजन हमें प्राप्त नहीं हुना । हम लोगों का काल बड़े क्लेश से व्यतीत हमा परन्तु इस भव्य जीब के प्रभाव से हम लोग सब प्रकार से सम्पन्न हो गए हैं ।५५१
भोगोपभोग के प्रकार-शयन, आमन, पान, गन्ध, भाला, वस्त्र, आहार, विलेपन, वाहन, चारण आदि परिकर५५२ की उत्कृष्टता अनुत्कृष्टता समृद्धि तथा असमृद्धि का लक्षण माना जाता था।
धन की महत्ता-धन का सदैव सांसारिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व रहा है । संसार में धन ही सब कुछ है। जिसके पास धन है उसके मित्र हैं, जिसके पास घन है उसके बान्धव है, जिसके पास धन है लोक में वह पुरुष है और जिसके पास धन है वह पण्डित है । जब मनुष्य धनरहित हो जाता है तब उसका न कोई मित्र रहता है न भाई । पर वहीं मनुष्य जब घन सहित हो जाता है तो अभ्य लोग भी उसके आत्मोय बन जाते है ।५५३ धन को इतमा महत्व देने पर भो अन्त में धर्म से युक्त धन को श्रेष्ठ माना गया है। धन वही है जो धर्म से सहित है और धर्म वही है जो निर्मल दया में सहित हैं तथा निर्मल दया वही है जिसमें मांस नही खाया जाता। मांस भोजन से दूर रहने वाले समस्त प्राणियों के अन्य स्वाग चूंकि मूल से सहित होते हैं इसलिए उनकी प्रशंसा होती है ।५४
त्रिवर्ग-त्रर्म, अर्थ और काम लोक में त्रिवर्ग के नाम से प्रसिद्ध है । रावण धर्म, अर्थ और काम रूप त्रिवर्ग से सहित था।"१५ इनमें से किसी एक की सिंक्षि या प्राप्ति ही उचित नहीं अपितु इन तीनों की सिद्धि होनी चाहिए । इन तीनों का सेवन कर अन्त में तुगत होकर विवेकी लोग सच कुछ छोड़कर घन सेवन करते थे। इसके कारण के लिए उनके बालों में से एक पका बाल या
५४१. पद्मः ११।३४८ । ५५१. वही, ११.३५१-३५२ । ५५३. वहीं, ३५।१६१, १६२ । ५५५. पही, ५३४८६ ।
५५०. पपा ११।३५० । ५५२, वही, ३।२२३, १०२११०३ । ५५४. वहो, ३५॥१६३, १६४ ।