Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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८० पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
स्रक्
माला में अनेक भारतीय भावनाओं ने प्रथन प्राप्त किया था । प्रत्येक माङ्गलिक कार्य में माला को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता था। अधिकतर ये मालाएँ फूल की हुआ करती थीं। सोने, मोती आदि की भी मालायें हुआ करती थीं। माला जिस विशेष वस्तु से निर्मित होती थी उसी के आधार पर उसका नाम पड़ जाता था । છત
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हाटक - पद्मचरित के प्रसङ्गानुसार हाटक का तात्पर्य सुवर्णमाला से लगाया जा सकता है । लव-कुश की बाल्यावस्था का वर्णन करते हुए रविषेण ने कहा है कि हाटक (सुवर्णमाला) में खचित ध्यान सम्बन्धी नखों की बड़ी पंक्ति उनके हृदय में ऐसी सुशोभित हो रही थी, मानों दर्प के अंकुरों का समूह ही हो ।
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रत्नजटित स्वर्णसूत्र ४८० - ( रत्नसंयुक्तं कांचन सूत्रकम् ) - सोने के धागे मैं पिरोया हुआ रहनों का हार ।
कराभूषण
केयूर ४०१ – बाँहों में भुजबन्द ( अंगद या केयूर ) पहनने को परम्परा स्त्री और पुरुष दोनों में थी ४८२ फेयूर सोने या चांदी के बनते थे, जिनमें लोग अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार मणियों जड़ा लेते थे । ४८३ पद्मचरित में एक स्थान पर स्वर्णनिर्मित फेयूर ( हेम केयूर ) ) *૮* का उल्लेख मिलता है। चांदी के केयूर का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। आधुनिक पहलवान के गंडों के समान लोग केयूरों को भुजदण्ड पर कुहनी से ऊपर बाँधा करते थे । ४८५ ग्यारहवें पर्व में बाजूबन्दों की किरणों से कन्धों के देवीप्यमान होने का कथन किया गया है ।
कटक - - हाथ में सोने, चांदी हाथीदांत तृषा शंख के प्राचीनकाल में प्रचलित थी । ♦ पद्मचरित से हमे बायें
कड़े पहनने की प्रथा
हाथ में स्वर्णनिर्मित
४७७, पद्म० ८८३१, ३।२७७ ॥
४७८. नरेन्द्रदेव सिंह भारतीय संस्कृति का इतिहास, पृ० ११४ ।
४७९ १० १०० १२५ ॥ ४८०. पद्म०, ३३/१८३ १ ४८१. बी. ८५१०७, ११३२८, ८ ४१५, ८८ ३१ ३२ ३ १९० । ४८२, नरेन्द्रदेव सिंह भारतीय संस्कृति का इतिहास, पृ० ११५ । ४८३, पद्म० । ४८४. पद्म० ३।११० । ४८५. भारतीय संस्कृति का इतिहास, पू० ११५ । ४८६. पद्म० ११०३२८ । ४८७. नरेन्द्रदेव सिंह भारतीय संस्कृति का इतिहास, पू० ११५ ।