Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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५६ : पचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
९५वे पर्व में सीता ने ऐसे दो अष्टापद देखे जिनकी काम्सि शरदऋतु के चन्द्रमा के समान थी, क्षोभ को प्राप्त हुए सागर के समान जिनका शब्द था, कलासपर्वत के शिखर के समान जिनका आकार था, जो सर्व प्रकार के अलंकारों से अलंकत थे. जिनकी उत्तप सारें कामिन प स पर जिनकी गर्दन की उत्तम जटायें सुशोभित हो रही थीं । २३३* यह स्वप्न देखने के बाद दूसरे स्वप्न में उन्होंने देखा कि वे पुष्पक विमान के शिखर से गिरकर पृथ्वी पर आ पड़ी हैं ।२३४ इन स्वप्नों का फल पूछने पर राम ने कहा कि अष्टापद गुगल देखने से तू शीत्र ही दो पुत्र प्राप्त करेगी । २३५ पुष्पक विमान से गिरने को यहाँ अनिष्टकारक बसलाया गया है ।
ग्रहोपग्रहों से प्राप्त शकुन-ग्रहोपग्रहों से प्राप्त शुभाशुभ स्वप्नों पर अधिक ध्यान दिया जाता था। विवाह की तिथि ज्योतिषी निश्चित करते थे। किसी दिन जबकि सौम्यग्ग्रह सामने स्थित होते, क्रूरग्रह विमुख्न होते थे और लग्न मंगलकारी होती थी तब प्रस्थान किया जाता था । २३ ज्योतिषचक के अनुसार ही जन्म और जीवन के सुख दुःखों का अनुमान होता था ।२३८ एक स्थान में सूर्य के बिम्ब में कबन्ध ( धष्ट ) दिखाई पड़ना और उससे खून की वर्षा होना अत्यन्त अशुभ माना गया है । २३९
विविध स्वप्न-आकाश में छत्र का फिरना,२४० घण्टा का मधुर शब्द होना,२४१ भेरी और शंख का शब्द होना२४५ तथा जीवों में मैत्री भाव होना२४॥ शुभ माना गया है।
शकुन का कारण-शुभ या अशुभ शकुनों का कारण प्राणियों का पूर्वोपार्जित कम है, ऐसी पध्य चरित की मान्यता है । दाहिनी आँख फड़कने के कारण दुःख आगमन की कल्पना कर सीता कहती है कि प्राणियों ने निरन्तर जो कर्म स्वयं उपार्जित किये है उनका फल अवश्य भोगना पड़ता है, उसका निवारण करना शक्य नहीं है ।२४४ यहाँ अनुमती नाम की देवी सीता को समझाती हुई कहती है कि पूर्व पर्याय में जो अच्छा बुरा कर्म किया है वहीं कृताम्त, विषि, देव अथवा ईश्वर कहलाता है । मैं पृथक रहने वाले कृतान्त के द्वारा इस अवस्था
२३३.* पप० ९५१६,७ । २३५. वही, १५।९। २३७. वही, ८।१८, १९। २३९. यही, ७४६ । २४१. वही, ५४०५१। २४३. वही, २।९४ ।
२३४. पप. १५।८। २३६. वही, ९५।१०। २३८. वही, १७६३६४-३७७ । २४०. वही, ५४१५१ । २४२. वही, ५४१५३ 1 २४४. वही, ९६।५।।