Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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६८ : पद्मचारत और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
विद्याधर - नमि और विनमि के वंश में
उत्पन्न हुए पुरुष विद्याधारण करने के कारण विद्याधर कहे जाते थे । ११८ इन्हें घर भी कहते थे । २१९ - जो गायों की रक्षा, देखरेख वर्ग रह करते थे ।
गोपाल *
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पालक १२१ -- जो जिसका पालन करते थे उसके पालक कहे जाते थे । जैसे reaties ( अस्तपाल ) गोपालक (गोपाल) उष्ट्रपालक (उष्ट्रपाल ) । इसीलिए रविषेण ने इनका सामान्य नाम पालक दिया है ।
वेश्या २२. जो रूप यौवन द्वारा जीविकोपार्जन करती थी । लासक' —जो नृत्य द्वारा जीविकोपार्जन करते थे । शस्त्रिष२४ -जो शस्त्र धारण करते थे ।
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अभि १५ जो दूसरे से याचना करते थे । विद्यार्थी - जो विद्योपार्जन करते थे ।
धूर्त २७ - जो छल कपट और पूर्तता द्वारा अर्थ का अर्जन करते थे । गीतशास्त्र कौशलको विद१२८-- जो संगीतशास्त्र के विद्वान् थे । विज्ञान ग्रहणोद्युक्त १२९. -जो कि ज्ञान के प्रहण करने में उद्यत रहते थे ।
शरणप्रास १६० --- जो शरण में आकर रहते थे ।
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सज्जन — जो साधुओं का संग करते थे । वार्तिक २
- समाचार प्रेषक ।
विदग्ध -३१३ विट४
—चतुर पुरुष |
- वेश्याओं के साथ रहने वाले ।
मार्गवति १३३५ सही मार्ग पर चलने वाले ।
चारण जो राजसभा में या जनता के सामने गीत गाया करते थे ।
३१८.
"नमेव विममेस्तथा । फुले विद्याचरा जाता विद्याधरणयोगतः ॥
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३१९. पद्म० ८०१५० ।
३२१. बही, २।२४ ।
३२३. वही, २।३९ ।
३२५. बही, २४० ।
३२७. वही, २४० ।
३२९. वही, २०४९
३३१. दही, २।४२ ।
३३३. वही, २०४३ । ३३५. वही, २०४३
प• ६२९० ।
२०. पद्म० २।१० ।
३२२. वही, २१३९ ।
३२४. वही, २४० ।
३२६. वही, २०४० ।
३२८. वही, २०४१ ।
३३०. वही, २१४२
३३०. वही, २०४३ ।
३३४. वही, २१४३ |
३३६. वही, २/४४ |