Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
सामाजिक व्यवस्था : ६९
कामुक -कामी पुरुष । सुखो -जिनके समस्त सांसारिक कार्य सिद्ध हो जाया करते थे।
मातंग३३९---चाण्डार को कइसे थे : पाचरित में चाण्डाल ३४० नाम भी आया है।
वन्दि २४१-जिनको किसी अपराध के कारण कारागार में बन्द रखा जाता था।
रजक२४२--जो अनेक प्रकार का शब्द करता हुआ शिलातल पर वस्त्र पछाड़ता था अर्थात् कपड़े साफ करने का कार्य करता था।
ऋत्विक ४--यज्ञ के लिए आमन्त्रित तथा तत्कार्य करने में निष्णात ब्राह्मण ऋस्विज कहलाता था । ये चार होते थे और एक-एक वेद के साथ सम्बद्ध होकर उसकी सहायता से अपना यशीय कर्म निष्पादन करते थे । ___ तापस-ओ ब्राह्मण घरबार छोड़कर (तपस्या के हेतु) वन में रहते थे और कन्दमूल आदि भक्षण करते थे। इनके साथ इनकी पत्नी भी रहती पी।५४४
पुरोहित ५-जो राजा के धार्मिक कार्यों में योग देता था। पुलिन्द --एक प्रकार की असभ्य जंगली जाति को पुलिन्द कहते थे ।
धोष३४७- अहीरों अथवा गोपालकों की बस्ती को घोष कहते है । घोष शब्द संस्कृत साहित्य में कई स्थान पर माया है ! गंगायां घोषः का उदाहरण तो सर्वत्र प्रसिद्ध है।
लब्धक -कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तल के द्वितीय अंक के प्रारम्भ में शकुनि लन्चक शब्द आया है, जिसका अर्थ चिड़ियों को मारने वाला शिकारी है । शकुनि लुब्धक का ही संक्षिप्त रूप सुग्धक हो गया। पद्मचरित में लापक शब्द का इसी अर्थ में प्रयोग हुआ है। पे लुब्धक पक्षियों को पकड़कर बेचा भी करते थे।
श्रेष्ठि-महाजनों के चौधरी या अगुआ पुरुष को प्राचीन काल से ही प्रेष्ठि
३३७. पद्म० २१४४ ।। ३३९, वही, २।४५ । ३४१. वही, ३३१४९ । ३४३. वही, १११०७ ३४५. वही, ४१।११५ । ३४७. वही, ३३१५२ ।
३३८. पद्म० २१४४। ३४०, वही, १४२७॥ ३४२. वही, ११११०१ । ३४४, वही, ११।११७, ११८ । ३४६. वही, ४१।३। ३४८. बही, ३९।१३८ ।