Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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७० : पचरित और उसमें प्रसिंपादित संस्कृति
कहते थे । इसका नगर में वही स्थान होता था जो मुगल काल में नगर सेठ का। राजदरबार में उसका बड़ा.मान था। वह व्यापारियों का प्रतिनिधि होता था। जातकों के कथानुसार उसका १६ पुश्तैनी होता था। वह अपने सरकारी पद से नित्य राजदरबार में उपस्थित होता या | भिक्षु (साधु) बनते समय अपवा अपना धन दूसरों को बांटते समय उसे रामा की आज्ञा लेनी पड़ती थी। महाजन बहुधा रईस होते थे और उनके अधिकार में दास, घर और गोपालक होते
थे।३४५
गोप३५०-गायों के रक्षक को गोप कहा जाता था। सूद३५१-- रसोइया । कैवर्त३५२--कहार।
पीठमई:५३–पचरित के चतुर्दश पर्व में दिन में भोजन करने का फल राजा तथा महामन्त्री होने के साथ-साथ पीठमर्द होना भी लिखा है 1341 आचार्य विश्वनाथ ने साहित्यदर्पण में नायक के बहदूरव्यापी प्रसङ्ग प्राप्त परित में नायक के सामान्य गुणों से कुछ न्यून गुण वाले नायक के सहायक को पीठमर्द कहा है। साहित्य दर्पण २३९
लेखवाह --जो पत्र ले जाने का कार्य करते थे। इस कार्य को कभीकमी विद्याधर तक करते थे । ३५५
तक्ष (तक्षक)-बढ़ई का काम करने वाले को तक्ष कहते थे । यह शिल्पियों का अग्रणी या तया युद्ध में सवारी के लिए रथ, माल होने के लिए छकड़े बनाता था जिसकी छत छदिस् कहलाती थी। वह परदा और बसूले से काम करता था और सुन्दर नक्काशी का भी काम करता था ।३५०
नदष५८-जो तरह-तरह का वेष धारण ३५९ कर विचित्र प्रकार की चेष्टायें करता पा !५० एचरित में कहा गया है कि संसारी प्राणियों की अनेक जन्म धारण करने के कारण नर के समान विचित्र चेष्टायें होती है । ३१
३४९. मं० मोतीचन्द्र : सार्थवाह पु. ६५, ६६ । ३५०. पद्मा ३४॥६॥
३५१. प० २२६१३४ । ३५२. दही, १४।२७ ।
३५३. वही, १४॥२८७ । ३५४, मही, १२१८२ ।
३५५. वही, १२१८२ ।। ३५६. वही, १२१८१। ३५७. नरेन्द्रदेव सिंह : भारतीय संस्कृति का इतिहास, पृ० १४० । ३५८. पना ९१॥३१॥ ३५९. पप. १२२३१० । ३६०. वही, ८५।९२ । ३६१. वही, ८५।९२१