Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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६२. पिंस्कृति
इस प्रकार की विद्यात्रों को धारण करने वाले विद्याधर कहे गये हैं। इनकी उत्पत्ति नमिनिमि के वंश में कहो गई है । २७५
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अन्य विद्याएँ- उपर्युक्त विद्याओं के अतिरिक्त वज्र (हीरा), मांती (मौभिक), (नीलम), सुवर्ण, रजतायुध तथा वस्त्र शंखादि रत्नों को उनके लक्षण आदि से अच्छी तरह जानना, २७६ वस्त्र पर धागे से कढ़ाई का काम करना तथा वस्त्र को अनेक रंगों में रंगना, लोहा, दन्त, लाख, क्षार पत्थर तथा सूत आदि से बनने वाले नाना उपकरणों को बनाना, ટ मूतिकर्म ( बेलबूटा खोचना), निविज्ञान (गड़े हुए धन का ज्ञान ), दणिग्विधि ( व्यापार कला ), जीवविज्ञान, २७९ मनुष्य घोड़ा आदि की निदान सहित चिकित्सा करना, १८० विमोहन अर्थात् मूर्च्छा तथा नाना प्रकार के कल्पित मत ८२ (सांख्य आदि) विद्याओं का उल्लेख पद्मचरित में किया गया है ।
२८९
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वर्ण व्यवस्था
पद्मचरित के अनुसार कृतयुग के प्रारम्भ में कल्पवृक्षों का अभाव होने पर प्रजा क्षुधा से पोड़ित हो भगवान् ऋषभदेव के पिता नाभिराम के पास गई। २८३ प्रजा के दुःख को सुनकर नाभिराय ने कहा कि महान् अतिशयों से सम्पन्न ऋषभदेव के पास चलकर हमलोग उनसे आजीविका का उपाय पूछें २८४ क्योंकि इस संसार में उनके समान मनुष्य नहीं है। ऐसा सुनकर प्रजा नाभिराय को साथ लेकर ऋषभदेव के पास गई। प्रजा की प्रार्थना पर ऋषभदेव ने सैकड़ों प्रकार
२७५, पद्म० ६।२१० ।
२७७. वही, २४५८ ।
ललितविस्तर में 'वस्त्र रागः' अर्थात् कपड़े रंगने को ८६ कलाओं के अन्तर्गत स्थान दिया गया है-हजारी प्रसाद द्विवेदी प्राचीन भारत के
कलात्मक विनोद, पू० १९५६
२७६. पद्म० २४४५७ ।
२७८. पद्म० २४/५९ । २७९. वही, २४६३ ।
२८०. वही २४ ६४ /
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२८१ पद्मचरित में मूर्च्छा के तीन भेद - मायाकृत, पीडा अथवा इन्द्रजाल कृत और मन्त्र तथा भौषधि आदि द्वारा कृत विनायें हैं । पद्म० २५/६५ । २८३. पद्म० ३।२३६ ।
२८२. पद्म० २४।६६
२८४. वहीं, ५।२४५-२४६