Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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४४ : पद्मपरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति का उच्चारण हो रहा था ऐसी स्त्रियाँ और परुषों की मन को हरण करने वाली चेष्टा होने लगी। पीते-पीते जो मदिरा शोष बच रही थी उसे भी दम्पति पी लेना चाहते थे । इसलिए तुम पिओ, तुम पिओ, इस प्रकार जोर से शब्द करते हुए प्याले को एक दूसरे की ओर बढ़ा रहे थे। १२ किसी सुन्दर पुरुष की प्रीति प्याले में समाप्त हो गई थी इसलिए वह वल्लभा का आलिंगम कर नेत्र बन्द करता हुआ उसके मुख के भीतर स्थित कुरले की मदिरा का पान कर रहा पा।१११३ मृत लक्ष्मण को मोहवश रामचन्द्र जी जीवित समझकर कहते है कि हे लक्ष्मोधर (लक्ष्मण) तुम्हें यह उत्तम मदिरा निरन्तर प्रिय रहती थी सो खिले हुए नीलकमल से सुशोभित पानपात्र में रखी हुई इस मदिरा को पिमओ।१४
मधु११५-पेय पदार्थों में मघ का भी नाम आता है। सैनिकों में पधपान प्रचलित था । स्त्री-पुरुष की कामक्रीडा के बीच मधु सहायक द्रप का काम देता पा।११६
दूध और दूध के बने पदार्थ पेय पदार्थों में दूध और दूध से बने पदार्थ दही,११८ रबड़ी,११९ घो१२० आदि का उल्लेख आता है । उपमा के प्रसंग में भी दूध, दही का नामोल्लेख हुआ है। ५१ पर्व में दधिमुख द्वीप का वर्णन करते हुए रविषण कहते है-'उस दघिमुख द्वीप में एक दधिमुख नाम का नगर था जो पही के समान सफेद महलों से सुशोभित तथा लम्बावमान स्वर्ण के सुन्दर तोरणों से युक्त था।१५१ मगध देश के पोड़ों और ईखों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि इनकी शोभा ऐसी है कि दूध के सिंचन से ही मानों उत्पन्न हुए है।"५२२
इक्षुरस-सुरस का प्रयोग भारत में प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। भीगभूमि के समय इक्षुरस ही प्रजा का उत्तम बाहार था । उस समय यह छहों रमों से सहित, बल-धीर्य करने में समर्थ तथा स्वयं बड़ने वाला था।१२३ राजा यांस ने ऋषभदेव को मर्वप्रथम पारस का आहार दिया था । इक्षुरस से गुड, लांड़, चीनी, मिश्री तथा तरह-तरह की मिठाइयां आदि बनाई
११२. पद्म ७३।१३६-१४४ । ११३. वही, ७३।१४५ । ११५. वही, १०२।१०५ । ११७. वही, ५३।१३७ । ११९. वहीं, ५३।१३७ 1 १२१. वहीं, ५११२। १२३. वहीं, ३।२३३ ।
११४. घही, ११८।१५। ११६. वही, ७३।१३९ । ११८, घही, ५३।१३७ । १२०. वहीं, ८०७७ । १२२. वही, २।४। १२४. वही, ४११६ ।