Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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कर्करा १०१ – मिश्री । खंडमोदक १०२ खांड़ के लट्टू ।
| १०३ – कचौड़ी
शष्कुली
पूरिका १०४ पूड़ियाँ |
गुडपूर्णिकापुरका ५ गुड़मिश्रित पूड़ी ।
१०५ (मेथी),
शाक भोजन - शाक भोजन के अन्तर्गत मैथिक (सेम), पनस ( कटहल ), चित्रभूत १०९ ( ककड़ी) तथा कूष्माण्ड (काशी
१०८
फल) के नाम आते हैं ।
पेय पदार्थ
सामाजिक व्यवस्था ४३
१०१. पद्म० १२० १२३ । १०३. वही, ३४।१४ ।
१०५. वही ।
१०७. वही, ४२/२१ । १०९. वही, ८० १५४ ।
१११ ही ११८१५ ।
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शामली
.११०
मदिरा १११ - पद्मचरित में प्रसंगानुसार स्थान-स्थान पर मदिरापान के उल्लेख मिलते हैं। स्त्री और पुरुष दोनों मदिरापान करते थे। कामक्रीडा के सहायक द्रश्यों में इसकी प्रमुखता बतलाई है । ७३वें पर्व में इसका सांगोपांग वर्णन है। रात्रि में होने वाली क्रीड़ाओं का उल्लेख करते हुए कवि कहता है"उस समय कितने ही लोग ताम्बूल, गन्धमाला आदि देवोपम उपभोग से मदिरा पीते 'हुए अपनी वल्लभाओं के साथ कोड़ा करते थे। नशा में निमग्न कोई एक स्त्री मदिरा के प्याले में प्रतिबिम्बित अपना ही मुख देख ईर्ष्याविश नीलकमल से पति को पीट रही थी। स्त्रियों ने मदिरा में अपने मुख को सुगन्धि छोड़ी थी और मदिरा ने उसके बदले स्त्रियों के नेत्रों अपनी लालिमा छोड़ी थी। कोई एक स्त्री मदिरा में पड़ी हुई अपने नेत्रों की कान्ति को नीलकमल समझ ग्रहण कर रही थी अतएव पति ने उसकी चिरकाल तक हँसी की कोई एक स्त्री यद्यपि प्रौढ़ नहीं थी तथापि धीरे-धीरे उसे इतनी अधिक मदिरा पिला दी गई कि वह काम के योग्य कार्य में प्रोढ़ता को प्राप्त हो गई अर्थात् प्रौढ़ा स्त्री के समान कामभोग के योग्य हो गई । उस मदिरा रूपी सखी ने लज्जा रूपी सखी को दूर कर उन स्त्रियों को पति के विषय में ऐसी क्रीड़ा कराई जो उन्हें अत्यन्त इष्ट भी अर्थात् स्त्रिय मंदिरा के कारण लज्जा छोड़ पतियों के साथ इच्छानुकूल क्रीड़ा करने लगीं। जिसमें नेत्र घूम रहे ये तथा बार-बार मधुर अधकटे शब्दों
में
१०७
१०२. पद्म० ३४।१४।
१०४. वही, ३४।१४, १२०/२३ ।
१०६. वही, ४२१२० ।
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१०८. वही ५३।१९७ । ११०. वही, ८० १५४ ।