Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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४० : पद्मपरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति मणि, हीरा,४५ स्फटिक मणि,५० इन्द्रनील मणि५१ तथा रत्न५२ के फलशों के उपयोग करने का उल्लेख मिलता है। रंग की दृष्टि से प्रातःकालीन धूप के समान लालवर्ण५६ के कलश तथा कदली वृक्ष के भीतरी भाग के समान सफेद रंग के कलशों के प्रयोग की बात कही गई है। कई कलश ऐसे भी होते ये को सुगन्धि के द्वारा अमर समूह को अपनी ओर आकृष्ट कर लेते थे ।
भोजन-पान-पद्मचरित की संस्कृति कृषि प्रधान संस्कृति है। इस फारण भोजन-गान की रुपरा: हिला को साटी पर किया गया । यद्यपि मांसाहार के भी उल्लेख प्राप्त होते है किन्तु उसे सामाजिक बोर धार्मिक दृष्टि से निन्दित और गहित स्वीकार किया गया है । सूर्य की किरणों से प्रकाशित, अतिशय पवित्र, मनोहर, पुष्प को बढ़ाने वाला, आरोग्यदायक और दिन में ही ग्रहण किये जाने योग्य भोजन ही प्रशंसनीय माना गया है। रात्रि मोजन की पहाँ अत्यधिक निम्बा की गई है। भोजन के लिए एक विशेष प्रकार के वातावरण पर अधिक ध्यान दिया जाता था । मन, प्राण और मेत्रों के लिए अभीष्ट जो भी वस्तुएँ वनों से उत्पन्न होती थीं उन्हें लाकर भोजन भूमि में एकत्रित करने का प्रयत्न किया जाता था। षट्स५९ भोजन का यहाँ उल्लेख हुआ है। पद रस के अन्तर्गत कटु, अम्ल, तिक्त, मधुर, कषाय और लवण पाते हैं । पदमचरित में प्रमुख रूप से चार प्रकार को भोजन सामग्री का उल्लेख है
१. अन्न भोजन । २. फल भोजन । ३. पक्वान्न भोजन । ४. शाक भोजन । अन्न भोजन-इसके अन्तर्गत निम्न प्रकार के अम्न थे
शालि"-हेमन्त ऋतु में होने वाला एक विशेष प्रकार का चावल, जिसका पौधा रोपा जाता है।
४८. पद्म ८०७५ ।। ५०. वही, ८०।७५ । ५२. वही, ८८1१०1 ५४. वही, ७२।१५। ५६. वही, ५३११४१ । ५८. वहीं, ८०७८ । ६०. वही, ५३११३५ ।
४९. पद्म ८०।७५ । ५१. वही, ८१७५ ५३. वही, ७२।१५ । ५५. वही, १४१२६६ । ५७. वही, १४॥२७२-२७४, १०६।३२, ३३॥ ५९. वही, ५३।१३६ ।