Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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पद्मचरित का परिचय : २१ आदि कामकलायें चित्रित की गई हैं। रविषेण के इस चित्रण पर वात्स्यायन का प्रभाव स्पष्ट रूप से है । शृङ्गार प्रधान कविता के लेखकों के लिए प्राचीनकाल में कामशास्त्र का ज्ञाता होना अत्यावश्यक समझा जाता था अतः जो कवि बनना चाहते थे वे व्याकरण, अलंकार और कोष के समान ही इस कामसूत्र का भी अध्ययन करते थे । १०:७ कुछ लोगों ने पद्मचरित के उपर्युक्त वर्णन को अश्लील कहा है । पर यह भी न भूलना चाहिए कि सुचि तथा कुरुचि और भौचित्य के मानदण्ड प्रत्येक देश तथा जाति में एक से नहीं होते। एक ही देश और जाति में भी वे समय-समय पर बदलते रहते है । ऐसे साहित्य का अध्ययन मनोवैज्ञानिक या किसी समस्या के समाधान की दृष्टि से करना चाहिए। शरीर के जिन अंगों का खुला प्रदर्शन समाज में शोभन नहीं माना जाता, एक कलाकार के कला भवन और शबच्छेदन की टेबल पर उन्हें क्रमश: सुन्दर और आवश्यक समझा जाता है । यह भी जान पड़ता है कि बीसवीं सदी के बहुत से साहित्यकारों पर फॉयड की छाप को तरह किसी युग में संस्कृत साहित्य के प्राचीन कदियों पर वात्स्यायन के कामसूत्र का गहरा प्रभाव पड़ गया था। साथ ही सदा से काव्य का एक प्रयोजन व्यवहार ज्ञान भी माना जाता रहा हूँ, इसीलिए कालिदास तथा उसके परवर्ती भारवि माघ, श्रीहर्ष आदि कवि अपनी रचनाओं में इस विषय को अधिकाधिक महत्त्व देते चले गये । ત रविषेण भी इसका अपवाद कैसे हो सकते थे । अतः उनकी रचना में भी ये तत्त्व समाहित हैं ।
करुण रस का चित्रण करने में भी कवि ने यथेष्ट सफलता पाई है। सप्तदश पर्व में सास-ससुर द्वारा परित्यक्ता अंजना की करुण स्थिति का चित्रण करते हुए कवि कहता है
"अंजना सहारा पाने की इच्छा से सखी के कन्धे पर हाथ रखकर चल रही थी पर उसका हाथ सखी के कन्धे से खिसककर बार-बार नीचे आ जाता था । चलते-चलते जब कभी डाभ की अनी पैर में चुभ जाती थी तब बेचारी आँख भीचकर खड़ी रह जाती थी ।११० वह जहाँ से पैर उठाती थी दुःख के भार से
१०७. कालिदास और उसको काव्यकला, पृ० १११ ।
१०८. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ९१ । ( नाथूराम प्रेमी )
१०९. फालिदास और उसकी काव्यकला, ५० १५३ ।
११० ततः सख्यं सविभ्यस्त विलंसिकर पल्लवा ।
दर्भसूचीमुख स्पशंकूणितेक्षणकोणिका
।। पद्म० १७।९९ ।
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