________________ नैषधमहाकाव्यम् / वैशिष्टयात राज्ञश्च गुणाद्भुतत्वेन वैचित्र्यात् न पुनरुक्तिदोषः। अनापि पूर्ववद् व्यतिरेकरूपकयो। संसृष्टिः // 2 // जिस ( नक) की कथा ( शृङ्गारादि नव ) रसोंसे ( केवल मधुर रसवाले, यामधुरादि छः रसोवले) अमृतको तिरस्कृत करनेवाली है अर्थात् अमृतसे भी श्रेष्ठ है, मुवर्णका दण्ड तथा एक श्वेतच्छन्त्र बने हुए है जलते हुए प्रताप-समूह तथा कीर्ति-समूह बिसके ऐसे ( अतएव, शौर्यादि या -- सन्धि-विग्रहादि छः ) गुणोंसे माश्चर्यकारक वे राजा नक थे। (अथवा-जिसकी कथा-रसोंसे सुधाकी अवधि अमृतकी सीमा अर्थात् श्रेष्ठतम अमृत) को हीन करनेवाली थी। अथवा-जिसकी कथा-रसोंसे सुधावधि अर्थात अमृतकी सीमा थी। अथवा- जिसकी कथा रसोंसे पुण्यसञ्चारिणी बुद्धिवाली, नित्य रणतत्पर तथा भूस्वामिनी थी, (इन तीनों विशेषणों से कथा मन्त्रशक्ति, उत्साहशक्ति तथा प्रभुशक्तिका होना सूचित होता है। अथवा-जिसकी कथा '' अर्थात् काम की भूमि अर्थात् बमिलापोस्पादिनी तथा एक श्वेतच्छत्व बने हैं जलते हुए (तीव्रतम ) अर्थात शत्रुओंको असम प्रताप-समूह तथा कीति-समूह जिससे (या-जिसके), ऐसे गुणाद्भुत वे (प्रसिद्धतम ) रामा नक थे) [ शृङ्गारादि नव रसोंवाली नल-कथा का एकमात्र मधुर रसवाली (या-मधुरादि षड्सोवाली) सुधाको पराजितकर तिरस्कृत करना उचित ही है / प्रतापका तप्तमुवर्ण के समान तथा कीर्ति-समूहका श्वेत वर्णन होने से यहॉपर उन्हे क्रमशः सुवर्णदण्ड तथा श्वेत छत्र बनाया गया है / राजाका सुवर्ण दण्डयुक्त एक श्वेतच्छत्र होनेसे अन्य राजामोंका नलके लिए करदाता होना सूचित होता है। जलते हुए नल. प्रताप-समूहका एक सुवर्णदण्ड बननेपर उस प्रतापसमूहका सङ्कचित होना ध्वनित होता है, अत एव 'सुवर्णदण्ड' शब्दका ब्राह्मणादि वर्गोंका सुन्दर शासन अर्थ करके परिहार करना उत्तम पक्ष है ] // 2 // पवित्रमत्रातनुते जगद्युगे स्मृता रसालनयेव तत्कथा'। कथं न सा मदिरमाविलामपि स्वसेविनीमेव पवित्रयिष्यति // 3 // सम्प्रति कविः स्वविनयमाविष्करोति पवित्रमिति / अत्र युगे कलौ इति यावत् / पस्य नलस्य कथा स्मृता स्मृतिपथं नीतेत्यर्थः / सती जगल्लोकं रसवालनयेव जलसा. लनयेवेत्युत्प्रेक्षा, 'देहधात्वम्बुपारदा' इति रसपाये विश्वः। पवित्रं विशुद्धम् आतनुते करोति, सा कथा आविलां कलुषामपि सदोषामपीति यावत , स्वसेविनीमेव केवलं स्वकीर्तनपरामेवेति भावः / मदिरंमम वाचं कथं न पवित्रयिष्यति ? अपितु पवित्रा करिष्यत्येवेत्यर्थः। तथा चोक्तं कर्कोटकस्य नागस्य दमयंत्या नलस्य च / ऋतुपर्णस्य रामकीर्तनं कलिनाशनम् // ' इति / या स्मृतिमात्रेण शोधनी सा कीर्तनात् किमु. 1. 'पत्कथा' इति 'प्रकाश' सम्मतः पाठः। - . .