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मरणकण्डिका -२
अर्थ - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की सिद्धि के पाँच हेतु हैं। यथा-द्योतन, मिश्रण, सिद्धि, व्यूढ़ि एवं निर्वृद्धि । इन पाँचों हेतुओं से रत्नत्रय की निरतिचार परिणति होना आराधना है ॥२॥
प्रश्न - इन द्योतन आदि के दूसरे नाम क्या हैं तथा इनके सामान्य लक्षण क्या हैं?
उत्तर - द्योतन, मिश्रण, सिद्धि, न्यूढ़ि और निषूदि के दूसरे नाम क्रमश: उद्योतन, उद्यवन, निर्वहन, साधन एवं निस्तरण हैं। इनके लक्षण इस प्रकार हैं
१. द्योतन अथवा उद्योतन - अतिचार दूर करने को द्योतन कहते हैं। २. मिश्रण या उद्यवन-आत्मा का बार-बार अपने विशिष्ट गुणरूप परिणत होना मिश्रण या उद्यवन है। ३. सिद्धि या निर्वहन-उपसर्ग या वेदना आदि आ जाने पर भी निराकुलता पूर्वक वहन करना सिद्धि है।
४. व्यूढ़ि या साधन - अन्य कार्यों में उपयोग संलग्न हो जाने पर पुन:पुन: उपयोग को उन्हीं गुणों में लवलीन करना व्यूदि या साधन है।
५. नियूँदि या निस्तरण - ग्राह्य गुणों को आगामी भव पर्यन्त या मरण पर्यन्त धारण किये रहना निद्रूढ़ि या निस्तरण है।
प्रश्न - ये द्योतन आदि पाँचों हेतु किनके हैं ?
उत्तर - ये द्योतन आदि पाँच हेतु सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र एवं तप इनमें से प्रत्येक के होते हैं। अर्थात् सम्यग्दर्शन की सिद्धि के ये पाँच हेतु हैं। सम्यग्ज्ञान की सिद्धि के भी यही पाँच हेतु हैं। इसी प्रकार चारित्र और तप के भी यही पाँच हेतु हैं।।
तीन श्लोकों द्वारा पाँच हेतुओं के लक्षण द्योतनं दर्शनादीनामलं मल-विसारणम् ।। आत्मनो मिश्रणं साधं, तैरेकीकरणं मतम् ।।३॥ सम्पूर्णीकरणं सिद्धियूंढिर्वा मतिरिष्यते । लाभ-पूजा-यशोर्थित्वं, व्यतिरेकेण योगिनः ।।४॥ परीषहोपसर्गादि, विनिपाते निराकुलम्।
पर्यन्ते प्रापणं तेषां, निर्वृदिर्महिता सताम् ।।५।। अर्थ - सम्यग्दर्शन-आदि के मल अर्थात् अतिचारों का निराकरण करना द्योतन है, तथा आत्मा के साथ उन सम्यग्दर्शनादि का एकीकरण करना मिश्रण है।।३।। सम्यग्दर्शन आदि को पूर्ण करना सिद्धि है, तथा योगियों की लाभ, पूजा एवं यश की वांछा के बिना उन्हें वहन करने की जो बुद्धि है वह न्यूढ़ि है।॥४॥ परीषह या उपसर्ग आदि आ जाने पर भी आयु के अवसान पर्यन्त उन्हें निराकुलता पूर्वक ले जाना, सज्जनों को मान्य ऐसी नियूँदि है॥५॥
प्रश्न - 'दर्शनादीनाम् पद से क्या-क्या ग्रहण किया है और उनके लक्षण क्या हैं ?