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श्रीमदाचार्यामितगतिप्रणीता मराकण्डिका
(आराधना विधि)
(पीठिका-प्रारम्भ) इस शास्त्र में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप, इन चार आराधनाओं के स्वरूप, भेद, उपाय, साधक, सहायक एवं फल का कथन किया जाएगा, अत: अपने द्वारा और श्रोताओं के द्वारा प्रारम्भ किये हुए कार्य में आगत विघ्नों को दूर करने के लिए मंगलाचरण करते हैं -
मङ्गलाचरण सिद्धान् नत्वाईदादींश्च, चतुर्धाराधना-फलम् ।
क्रमेणाऽहं ध्रुवं वक्ष्ये, स्व-स्वरूपोपलब्धये ॥१॥ अर्थ - सिद्ध परमेष्ठी, अर्हन्त परमेष्ठी तथा आदि शब्द से आचार्य, उपाध्याय एवं साधु परमेष्ठियों को नमस्कार करके मैं (ग्रन्थकार) क्रमश: चार आराधनाओं और उनका फल अपने स्वरूप अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति के लिए निश्चय से कहता हूँ ||१||
प्रश्न - ग्रन्थ की आदि में मंगलाचरण क्यों किया जाता है? ___ उत्तर - ग्रन्थ की निर्विघ्न समामि, नास्तिकता का परिहार और शिष्टाचार प्रतिपालन हेतु मंगलाचरण किया जाता है।
रत्नत्रय की सिद्धि के हेतु एवं आराधना का लक्षण द्योतनं मिश्रणं सिद्धिं, व्यूढिं निढिमञ्जसा। दर्शन-ज्ञान-चारित्र-सिद्धिहेतुं समाहिते ॥२॥