________________ भट्टमात्रा ने वसन्तादि राग गाना स्वीकार किया और वह्निवैतालिका (अग्निवैताल) ने वीणा बजाना स्वीकार किया और शीघ्र ही आभरणादि धारण करके पांचो रूपश्री के साथ राजकुमारी के सामने खडे हो गये और निश्चय मुताबिक गाना-बजाना शुरू किया, जिससे प्रसन्न होकर विक्रमा को अकेलीको रात्रि में गाने-बजाने के लिये बोलाई गई। लक्ष द्रव्य देना होगा तय कर आना स्वीकार किया और रात्रि में आकर विक्रमा सेवामें खड़ी हो गई। स्नान करके अपने सामने विक्रमा को हाजिर होना एसा दासी के द्वारा सुनाया बाद विक्रमाने अनुचित समझा। फिर दोंनो साथ में भोजन करेंगे एसा आग्रह किया गया वह भी विक्रमाने अनुचित समझा, फिर नरद्वेषिणी राजकुमारी गाना सुनने के लिये बैंठी / गाने में पुरुषों का सहकार बताया गया, जिस पर सुकोमला ने विक्रमा के साथ चर्चा कि और अपने नरद्वेष का कारण बताया गया और विक्रमाने सुकोमला के सातों भव सुनाने का आग्रह किया और सुकोमलाने : मनोरंजक भाव से अपने सातों भव सुनाये। .. सातो भव में धन और श्रीमती का भव 1, जितशत्रु और पद्मावती का भव 2, विभावसु देवकी पत्नी मृगलीका भव 3, देवीका भव 4, विप्र की पुत्री मनोरमा का भव 5, शुकी का भव 6, और . शालिवाहन राजा की पुत्री सुकोमला का सातवा 'भव 7 ए सात भव सुन के विक्रमा ने पारितोषिक लिया और सूर्योदय होने से अपने ठिकाने पर गई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org