________________ था। बाद में बह देव अस्य हो गया। अब यहाँ राजा को देव के मुख से सुकोमला का जो वर्णन सुना था जिस से उस के प्रति उस का आकर्षण हुआ और उस की प्राप्ति के लिये राजाको अनेक संकल्पविकल्प होने लगे। राजा के मित्र महामात्य भट्टमात्र यह बात समझ गये और राजा को पूछने पर राजाने मनोगत भाव भट्टमात्र को सुनाया। हे राजन् ! नरद्वेषिणी से लग्न करना 'सोये हुए साप को जगाना बराबर है' एसा भट्टमात्रने राजा को समझाया। लेकिन जिस का मन जिस के प्रति होता है उस को रोकना मुश्केल होता है। दृढाग्रही राजा का मन सुकोमला में ही कटीबद्ध था यह एसा देखकर भट्टमात्र ने सोचा। प्रतिष्ठानपुर में आगे रह चुकी मदना और कामकेली वेश्या के द्वारा यह कार्य सिद्ध हो सकता है और उस की बहन अभी भी वहाँ रहती है इसलिये कार्य सुकर है एसा सोचकर उस को बोलाई गई। उन्होने राजा को साथ ले जाना उचित समझा और प्रतिष्ठानपुर की ओर बाले / स्मरण से राजा का मित्र अग्निवैताल हाजर हुआ। राज्य चलाने के लिये बुद्धिसागर मंत्री को नियत करके भट्टमात्र को साथ लेकर वे घाच अवन्तीसे चले और प्रतिष्ठानपुर आये और वहा के बगीचे में ठहरे। उद्यानरक्षिका मार्जारीने ‘अपनी राजकुमारी नरदेषिणी है और . . मनुष्य को देखते हि मार डालती है एसी चेतावनी देने से राजाने अपना रूप परिवर्तन किया और समी 'रूपश्री' के वहाँ गये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org