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have been delivered by the author at the court of Amoghavarsha, where many learned men and doctors had assembled.
Mysore Archaeological Report 1922. Page 23. अर्थात् एक कई मनोरंजक विषयों से परिपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ कल्याणकारक श्री उमादित्य के द्वारा रचित मिला है, जो कि जैनाचार्य थे और राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष प्रथम व चालुक्य राजा कलि विष्णुवर्धन पंचम के समकालीन थे । ग्रंथ का प्रारंभ आयुर्वेद तत्व के प्रतिपादन के साथ हुआ है, जिसका दो विभाग किया गया है । एक रोगरोवन व दूसरा चिकित्सा 1 अंतिम एक गद्यात्मक प्रकरण उस विस्तृत भाषणको लिखा है. जिस में मांस की निष्फलताको सिद्ध किया है जिसे कि अनेक विद्वान् व वैद्योंकी उपस्थिति में नृपतुंगी सभामें उम्रादित्याचार्य ने दिया था ।
इतना लिखने के बाद पाठकों को यह समझने में कोई कठिनता ही नहीं होगी कि उग्रादित्याचार्यका समय कौनसा है । सारांश यह है कि वे अमोघवर्ष प्रथम के समकार्लान अर्थात् श. संवत् के ८ वीं शताब्दिमें एवं विक्रम व किस्त की ९ वीं शताब्दि में इस धरातलकों अलंकृत कर रहे थे यह निश्चित है ।
विशेष परिचय.
उग्रादित्यने अपना विशेष परिचय कुछ भी नहीं लिखा है । उन की विद्वत्ता, वस्तु विवेचन सामर्थ्य, आदि बातों के लिए उन के द्वारा निर्मित ग्रंथ ही साक्षी है । उनके गुरु श्रीनंदि, ग्रंथनिर्माण स्थान रामगिरि नामक पर्वत था। रामगिरि पर्वत वेंग में था । aगि त्रिकलिंग देशमें प्रधान स्थान है । गंगासे कटकतक के स्थानको उत्कलदेश कहते हैं । वही उत्तरकालंग है । कटकसे महेंद्रगिरि तकके पहाडी स्थानका नाम मध्यकलिंग है। महेंद्रगिरि से गोदावरीतक के स्थान को दक्षिणकलिंग कहते हैं । इन तीनोंका ही नाम त्रिकलिंग है | ऐसे त्रिकलिंग के बेंगीमें सुंदर रामगिरि पर्वतके जिनालय में बैठकर उम्रादित्यने इस ग्रंथकी रचना की है। यह रामगिरि शायद वही हो सकता है जहां पद्मपुराण के अनुसार रामचंद्रने मंदिर बनावाये हों । इससे अधिक महर्षि का परिचय भले ही नहीं मिलता हो तथापि यह निश्चित है कि उम्रादित्याचार्य ८ वीं शताब्दी के एक माने हुए प्रौढ आयुर्वेदीय विद्वान् थे । इसमें किसीको भी विवाद नहीं हो सकता ।
अंतिम प्रकरण में आचार्यश्रीने मद्य, मांसादिक गर्ह्य पदार्थों का सेवन औषधि के नाम से या आहार के नाम से उचित नहीं है, इसे युक्ति व प्रमाण से सिद्ध किया है । एक अहिंसा धर्मप्रेमी इस बात को कभी स्वीकार नहीं कर सकता कि एक व्यक्ति को सुख पहुंचाने के लिए अनेक जीवोंका संहार किया जाय । अनेक पाश्चात्य वैज्ञानिक वैद्यकविद्वान भी आज मांसकी निरुपयोगिता को सिद्ध कर रहे हैं । अखिल कर्णाटक आयुर्वेदीय महासम्मेलनमें आयुविज्ञानमहार्णव आयुर्वेदकलाभूषण विद्वान् के शेषशास्त्री ने सिद्ध किया था कि मद्य मांसादिक का उपयोग औषध में करना उचित नहीं
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