Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि ...3 इस अक्षर का एक अन्य अर्थ 'विवेक' भी किया है यानी श्रावक सभी क्रियाओं को विवेकपूर्वक करें। __श्रावक शब्द में तीसरा अक्षर 'क' है। इसके दो अर्थ घटित होते हैं। प्रथम अर्थ के अनुसार पाप को काटने वाला और द्वितीय अर्थ के अनुसार आवश्यकताओं को कम करने वाला।
अर्वाचीन ग्रन्थों में श्रावक शब्द का निम्नोक्त अर्थ प्राप्त होता हैश्र=श्रद्धा, व विवेक, क-क्रिया अर्थात जो श्रद्धापूर्वक विवेकयुक्त आचरण करता है, वह श्रावक है।
अभिधान राजेन्द्र कोश के सप्तम खण्ड में 'श्रावक' को इस प्रकार व्याख्यायित किया गया है। ___(i) 'श्रृणोति जिनवचनमिति श्रावकः।' जो जिनवाणी का श्रवण करता है, वह श्रावक कहलाता है। ___(ii) 'श्रान्ति पचंति तत्त्वार्थ श्रद्धानं निष्ठां नयन्तीति श्राः, वपंति गुणवंत-सप्तक्षेत्रेषु धनबीजानि निक्षिपंतीति वः, किरंति क्लिष्ट कर्मरजो विक्षिपन्तीति काः, तत् कर्म धारये श्रावकाः इति भवंति।'
जो जिनोक्त तत्त्वों पर श्रद्धा करता है, सात पुण्य क्षेत्रों में धन का व्यय करता है तथा कर्म-क्षय हेतु प्रयत्नशील बनता है, वह श्रावक कहलाता है।
(iii) 'श्रृणोति साधुसमीपे साधु-समाचारीमिति श्रावकः।' जो साधु के निकट श्रमण-समाचारी का श्रवण करता है, वह श्रावक कहलाता है। व्यवहार में श्रावक शब्द का अभिप्राय यह है
श्रद्धालुतां श्राति श्रृणोति शासनं, दानं वऐदाशु वृणोति दर्शनम् । कृन्तत्यपुण्यानि करोति संयम
तं श्रावकं प्राहुस्मी विचक्षणाः ।। श्रा अर्थात जिनवाणी पर दृढ़ श्रद्धा अथवा शास्त्र-श्रवण।। व अर्थात करणीय-अकरणीय का विवेक अथवा दान-बीज का वपन। क अर्थात अशुभ का छेदन अथवा क्रिया-निष्ठ जीवन।
इन तीनों में सम्यकदर्शन, ज्ञान और सम्यकचारित्र की स्पष्ट अभिव्यक्ति है। अर्थात जो सुदेव, सुगुरु और सुधर्म के प्रति आस्थावान है, आत्मा के हिताहित को जानता है और सदाचरण में कुशल है, वह श्रावक कहलाता है।