Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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52... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
इसके अतिरिक्त उस वृक्ष या पौधे के वे सभी अंग भी अनन्तकाय माने जाते हैं जहाँ से नव अंकुरण प्रारम्भ होता है। इस प्रकार अंकुरित कोमल पत्तियाँ भी अनन्तकाय है। इनकी संख्या बत्तीस है
1. सूरणकंद, 2.वज्रकंद 3. आईहल्दी 4. अदरक 5. हराकचूर 6. शतावरी 7. विराली 8. कुंआरपाठा 9. थूहर 10. गिलोय 11. लहसुन 12. बांस का अंकुर 13. गाजर 14. लवणक(जिसे जलाकर साजी बनाते हैं)
15. पद्मिनीकंद 16. गिरिकर्णिका(लताविशेष) 17. किसलय(नये कोमल पत्ते) 18. कसेरू 19. थेगकंद एवं भाजी 20. हरा मोथा 21. लवणवृक्ष की छाल 22. खिलोड़ी(कंद विशेष) 23. अमृतबेल 24. पालक की भाजी 25. कोमल इमली- जो बीजरहित हो 26. मूला 27. भूमिस्फोट(छत्राकार मशरूम) 28. अंकुरित धान्य 29. बथुए की भाजी(प्रथम उगी हुई) 30. शूकरबेल(बड़ी बेल) 31. आलू और 32. पिण्डालू।78
ये बत्तीस अनन्तकाय आर्यदेश में प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त वे सभी खाद्य वस्तुएँ, जिनमें अनन्तकाय के शास्त्रोक्त लक्षण हों, व्रतधारी के लिए त्याज्य हैं।
व्रतधारी को जुआ, मांसाहार, मद्यपान, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन, चोरी, शिकार- इन सात व्यसनों का सेवन भी नहीं करना चाहिए। व्रतग्राहियों के लिए अभिग्रहदान-विधि
जैन अवधारणा में सम्यक्त्वव्रत, बारहव्रत, सामायिकव्रत आदि स्वीकार करने वाले गृहस्थ को व्रतसंरक्षणार्थ कुछ नियम दिलवाए जाते हैं। इसे अभिग्रहदान-विधि कहते हैं। विधिमार्गप्रपा9 एवं आचारदिनकर80 के मतानुसार अभिग्रहदान (नियम ग्रहण) की यह विधि है
. सर्वप्रथम बाईस अभक्ष्य, बत्तीस अनन्तकाय आदि श्रावक को नहीं खाने चाहिए-यह नियम दिलाएं। • उसके बाद गुरू व्रतग्राही द्वारा यह उच्चारण करवाए-मैं जीवित रहूंगा, वहाँ तक अरिहंत मेरे देव हैं, सुसाधु मेरे गुरू हैं और वीतरागी पुरूषों द्वारा प्ररूपित सिद्धांत मेरा धर्म है-ऐसा सम्यक्त्व मैंने ग्रहण किया है। • आज के बाद अरिहंत को छोड़कर अन्य देवों को और जैन-साधु को छोड़कर अन्य यतियों या विप्र आदि को भावपूर्वक वंदन नहीं करूंगा। • जिनेश्वर द्वारा प्रतिपादित सात तत्त्वों को छोड़कर अन्य तत्त्वों पर श्रद्धा नहीं