Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...285 श्वेताम्बर-मूर्तिपूजक की प्रचलित परम्पराओं में प्रत्याख्यान पारने की विधि इस प्रकार है
• प्रत्याख्यान पूर्ण करने वाला आराधक सर्वप्रथम एक खमासमणसूत्रपूर्वक वन्दन कर ईर्यापथिक का प्रतिक्रमण करें। • फिर चैत्यवन्दन46 बोलकर जंकिंचि., णमुत्थुणं., जावंतिचेइआई., जावंतकेविसाहू., उवसग्गहरं. और जयवीयराय तक सभी सूत्र बोलें।
• यहाँ चैत्यवन्दन के स्थान पर खरतरगच्छ परम्परा में 'जयउसामिय', तपागच्छ एवं त्रिस्तुतिक परम्परा में 'जग चिंतामणि' अचलगच्छ में 'जय-जय महाप्रभु' और पायच्छंदगच्छ में ‘सिरिरिसहेसर' नामक सूत्र पाठ बोलते हैं।
• उसके बाद पौषधव्रती या उपधानवाही एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन् ! सज्झाय करूँ?' 'इच्छं' कहकर एक नमस्कारमन्त्र के स्मरण पूर्वक सज्झाय बोलें।
• यहाँ खरतरगच्छ में 'उपदेशमाला', तपागच्छ में 'मन्नहजिणाणं', अचलगच्छ में 'अरहंदेवो', पायच्छंदगच्छ में 'अरिहंतामंगलं' और त्रिस्तुतिक में 'मन्नहजिणाणं' पाठ की सज्झाय बोलते हैं। यदि गुरू महाराज विराजमान हों, तो खरतरगच्छ-आम्नाय में गुरू मुख से 'धम्मोमंगल' का पाठ सुनते हैं।
• तत्पश्चात् प्रत्याख्यान पारने हेतु एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! पच्चक्खाण पारवा मुँहपत्ति पडिलेहूँ?' 'इच्छं' कहकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें।
. उसके बाद एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन् ! पच्चक्खाण पारेमि?' 'यथाशक्ति' कहें। पुन: एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि.! पच्चक्खाण पारूं?' 'तहत्ति' बोलकर दाहिने हाथ को मुट्ठि रूप में चरवले या आसन पर रखते हुए एक नमस्कारमन्त्र गिनें। फिर गृहीत प्रत्याख्यान के स्मरण पूर्वक प्रत्याख्यान पारने का सूत्र बोलें।
प्रत्याख्यान पूर्ण करने का पाठ निम्न है
उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं, पोरिसिं, साढ़पोरिसिं, गंठसहियं, मुट्ठिसहियं, पच्चक्खाण कर्यु., चउविहार, आयंबिल, निवि एकासणा, बीयासणा पच्चक्खाण कर्यु, तिविहार पच्चक्खाण फासिअं, पालिअं,