Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 480
________________ 414... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक 110. सेनप्रश्न, प्रश्नांक - 28, 34, 81, 82, 83, 194, 297, 314, 315, 319, 321, 377, 417, 447, 458, 459, 482, 512, 527, 554, 555, 556, 685, 725, 766, 774, 776, 789, 948, 972, 111. महानिशीथ, 3/28 112. सुबोधासामाचारी, पृ.-8 113. विधिमार्गप्रपा, पृ. - 10 114. आचारदिनकर, पृ. 58 115. महानिशीथ, 3/30-1 116. वही, 3/30-2 117. सुबोधासामाचारी, पृ. 9 118. विधिमार्गप्रपा, पृ. 16 .... 119. आचारदिनकर, पृ. -59 120. से भयवं ! कयराए विहिए पंच मंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं ? गोयमा ! इमाए बिहिए पचमंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं, तं जहा- सुपसत्थे चेव तिहि करण - मुहुत्त - नक्खत्त- जोग- लग्ग-ससीबले विप्पमुक्कजायाइमयासंकेण संजाय-सद्धासंवेगसुतिव्वतर- महंतुल्ल संतसुहज्झवसायाणु गय भत्ती बहुमाणपव्वं णिन्निआणदुवालसभत्तठिएणं चेइआलए जंतु विरहिओगासे जाव नवनवसंवेगसमुच्छलंत- संजाएबहलगण- निरंतर अचिंतपरमसुहपरिणामविसेसुल्लासिअ जाव दृढयरंत - करणेण जाव पंचमंगलमहासुयक्खंधस्स पंचज्झयणेग- चूला परिक्खित्तस्स परवरपवयणदेवयाहिट्ठिअस्स तिपद परिच्छिन्ने- गालावग सत्तक्खरपरिमाणं अणंतगमपज्जवत्थ पसाहगं सव्वमहामंतपवर-विज्जाणं परमबीअभूयं 'नमोअरिहंताणं' त्ति पढममज्झयणमहिज्झेअव्वं तद्दियहे य आयंबिलेणं पारेयव्वं । महानिशीथ, अ. 3, पृ. -42 121. तहेव बीयदिणे जाव दुपदपरिच्छिन्नेगालावग पंचक्खर - परिमाणं 'नमो सिद्धाणं’ त्ति बीअमज्झयणं आयंबिलेणं अहिज्झेअव्वं । वही, पृ.-42 वही, पृ. 42 इत्यादि चूलं वही, पृ. 43 वही, पृ. 43 122. एवं जाव पंचमज्झयणं पंचमदिणे आयंबिलेणं । 123. तहेव जाव तिआलावगतित्तीसक्खरपरिमाणं 'एसोपंचनमुक्कारों', छट्ठसत्तट्ठमदिणे आयंबिलेहिं अहिज्झेअव्वं । 124. जाव अट्ठमभत्तेणं समणुजाणविऊण जाइ अवधारेअव्वं इत्यादि।

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