Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 511
________________ उपासकप्रतिमाराधना विधि का शास्त्रीय विश्लेषण... 445 यदि दिगम्बराचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों का अवलोकन करें, तो ग्यारह प्रतिमाओं के स्वरूप आदि से सम्बन्धित कुछ कृतियाँ अवश्य प्राप्त होती हैं। उनमें सर्वप्रथम आचार्य कुन्दकुन्द रचित 'कषायपाहुड' की जयधवलाटीका '7 में ग्यारह प्रतिमाओं के नामोल्लेख के साथ-साथ उनके स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। इसी क्रम में आचार्य समन्तभद्र के रत्नकरण्डक श्रावकाचार में श्रावक के ग्यारह पद कहकर प्रत्येक का स्वरूप प्रतिपादित किया गया है। 78 स्वामी कार्तिकेय ने प्रतिमा के आधार को लेकर श्रावकधर्म के बारह भेद किए हैं। 79 सोमदेव ने उपासकाध्ययन में केवल दो श्लोकों में ग्यारह प्रतिमाओं को वर्णित किया है। जहाँ दिगम्बर - परम्परा में 'सचित्तत्याग' को पाँचवीं एवं 'आरम्भत्याग’ को आठवीं प्रतिमा माना है, वहीं सोमदेव ने क्रम बदलकर आरम्भत्याग को पाँचवीं तथा सचित्तत्याग को आठवीं प्रतिमा कहा है। 80 इसके अतिरिक्त अमितगतिश्रावकाचार 1, वसुनन्दिश्रावकाचार 2, सागारधर्मामृत, प्रश्नोत्तर श्रावकाचार एवं लाटीसंहिता आदि ग्रन्थों में भी ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन प्राप्त होता है, परन्तु प्रतिमाएँ किस विधि पूर्वक ग्रहण की जाएं, इस सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा गया है। उक्त वर्णन से फलित होता है कि श्वेताम्बर - परम्परानुसार विक्रम की 10वीं शती और दिगम्बर ग्रन्थानुसार 14वीं - 15वीं शती तक प्रतिमा स्वीकार करने के संदर्भ में एक सुनिश्चित विधि-विधान का अभाव था। संभवत: सामान्य क्रियाकलापों एवं दृढ़ संकल्प के साथ ये प्रतिमाएँ ग्रहण करवाई जाती होंगी। यदि इस विषय को लेकर मध्यकालीन ग्रन्थों पर दृष्टिपात करें, तो सर्वप्रथम तिलकाचार्यकृत सामाचारी में इस विधि का प्रारम्भिक स्वरूप उपलब्ध होता है।84 तदनन्तर इस विधान का एक सुनियोजित स्वरूप आचारदिनकर में उपलब्ध होता है। यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि श्वेताम्बर की परवर्ती रचनाओं में यह विधि सम्यक् रूप से उल्लिखित होने पर भी इस आम्नाय में यह विधान लुप्तप्राय हो चुका है, जबकि दिगम्बर- परम्परा की किसी रचना में यह विधि लिखी गई हो-ऐसा देखने में नहीं आया है, फिर भी उनमें यह विधान मौजूद है। अतः यह सुसिद्ध है कि यह साधना आगम प्रमाणित है ।

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