Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 513
________________ उपासकप्रतिमाराधना विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ...447 त्याग करता हूँ और दर्शनप्रतिमा ग्रहण करता हूँ। आज से अन्य तिर्थों के देवों तथा अन्य तैर्थिकों द्वारा गृहीत अर्हत् चैत्यों को वंदन - नमस्कार करने का त्याग करता हूँ। इस प्रकार अन्य तैर्थिकों के साथ सम्भाषण करने, उनसे संलाप करने, उनको अशनादि देने का तीन योग तीन, करण से, अर्थात् मन-वचन-काया से करने करवाने अन्य करने वालों की अनुमोदना करने का त्याग करता हूँ। साथ ही पूर्वकृत दोषों की निन्दा करता हूँ, वर्तमान की सावद्य - क्रिया का संवरण करता हूँ एवं भविष्य में न करने की प्रतिज्ञा करता हूँ। मेरी यह प्रतिज्ञा अरिहंत, सिद्ध साधु, देव, गुरू और आत्मसाक्षीपूर्वक है। द्रव्य से दर्शनप्रतिमा का, क्षेत्र से सर्वत्र, काल से एक मास तक भाव से जब तक रोगादि से ग्रसित न हो जाऊँ, तब तक इस प्रतिमा का पालन करूंगा। , - तदनन्तर गुरू अक्षत एवं वासचूर्ण अभिमन्त्रित करें। प्रतिमाग्राही श्रावक सात बार खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन करता हुआ गुरू से निवेदन करें, सभी मुनियों को प्रतिमाग्रहण करने की सूचना दें, सकल संघ को तीन प्रदक्षिणा पूर्वक प्रतिमाग्रहण करने की प्रतिज्ञा से अवगत करायें। उनकी वर्धापना को स्वीकार करें। दर्शनप्रतिमा में स्थिर रहने के निमित्त कायोत्सर्ग करें। तदनन्तर एक मास के लिए यथाशक्ति आयम्बिल आदि तप करने का, दिन की तीनों संध्याओं में विधिपूर्वक देवपूजन करने का, पार्श्वस्थ (शिथिलाचारी) मुनियों को वन्दन न करने का, शंका आदि पाँच प्रकार के अतिचारों का सेवन न करने का एवं राजा आदि छ: प्रकार के अभियोगों का प्रसंग आने पर भी दर्शनप्रतिमा का त्याग नहीं करूँगा, इत्यादि प्रकार के अभिग्रह (नियम) धारण करें। यह विधि दर्शनप्रतिमा ग्रहण करने से सम्बन्धित कही गई है। शेष प्रतिमाएँ ग्रहण करने की भी यही विधि है। केवल अन्तर यह है कि दूसरी व्रतप्रतिमा धारण करते समय दंडक में दो मास और मिथ्यात्व के स्थान पर 'निरतिचारपंचाणुव्रतप्रतिपालनविषया गुणव्रतशिक्षाव्रतप्रतिपालनं' वाक्य बोलना चाहिए। तीसरी सामायिकप्रतिमा ग्रहण करते समय तीन मास और 'उभयसन्ध्यं सामायिकं करोमि, या सामाइयपडिमं उवसंपज्जामि पाठ बोलना चाहिए। चौथी पौषधप्रतिमा धारण करते समय चार मास और 'पोसहपडिमं उवसंपज्जामि' पद कहना चाहिए। शेष प्रतिमाएँ ग्रहण करते समय क्रमशः पाँच मास, छः मास आदि बोलना चाहिए तथा नन्दीविधि,

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