Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 540
________________ LOOKIO TUMUTURUMUNUNURK யாயாயாயாயாயாயாயா सज्जन चिंतन के स्वर्णिम मोती * श्रावक कहलाने का हकदार कौन? •श्रावक जीवन के Most Important कर्तव्य? * श्रावक जीवन में समय प्रबंधन का महत्त्व? •सद्गृहस्थ को क्या करना चाहिए और क्या नहीं? •सम्यक्त्व व्रत विधि आगमों से अब तक? * श्रावक जीवन के निर्माण में बारह व्रतों की भूमिका? •सामायिक साधना शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शांति का गरु मंत्र कैसे? •सामायिक उपकरणों का बदलता स्वरूप? उपधान विधियों में आए परिवर्तन आवश्यक या अनावश्यक? उपासक प्रतिमा ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप? மையையையையையையையையையையை SUMURUMUMUMUMUMUMU IR A903 SAJJANMANI GRANTHMALA Website: www.jainsajjanmani.com.E-mail : vidhiprabha@gmail.com KAISBN 978-81-910801-6-2 (1)

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