Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 521
________________ उपासकप्रतिमाराधना विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ...455 43. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, श्लो.-34, 41, 42 44. श्रावकाचारसंग्रह, भा.-1, पृ.-223 45. वही, भा.-2, पृ.-22 46. वही, भा.-1, पृ.-257 47. धर्मरत्नाकर, आ. जयसेन, श्लोक-62-64 48. वही, 35-36 49. वही, 76-77 50. वही, 32-33 51. वही, 9-10 52. वही, 17 53. वही, 27 54. वही, 36 55. वही, 44 56. वही, 67 57. वही, 73 58. पंचाशकप्रकरण, 10/39-42 59. श्री भिक्षुआगमविषयकोश, भा.-2, पृ.-157 60. समवायांग, 11/1 की टीका, उद्धृत- श्री भिक्षुआगमकोश, भा.-2, पृ.-154 61. से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहण्णेणं एगाहं वा, दयाहं वा, तियाहवा ____ जारव-उक्कोसेणं पंच मासं विहरइ सव्व-धम्म-रूई यावि भवइ-जाव उद्दिट्ठभत्ते ...... उक्कोसेणं एक्कारसमासे विहरेज्जा। दशाश्रुतस्कन्ध, 6/17-30 62. एवं उक्कोसेणं एक्कारस, मास जाव विहरेइ। एगाहादियरेणं, एयं सव्वत्थ पाएण।। ___ पंचाशक प्रकरण, 10/38 63. वरदसणवयजुत्तो, सामाइयं कुणइ जो उ। तिसंझासु उक्कोसेण, तिमासं एसा सामाइय पडिमा।। पुव्वोदियपडिमजुओ, पालइ जो पोसहं तु सम्पुण्णं। अट्ठमिचउद्दसाइसु, चउरो मासे चउत्थी सा । उपासकदशा, सू.15 की टीका, आगमसुत्ताणि, भा. 7,पृ. 276-77

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