Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 516
________________ 450... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... का तात्त्विक स्वरूप उपरोक्त ग्रन्थों में ही निर्दिष्ट है। जब हम इन ग्रन्थों के आधार पर तुलनात्मक-विचार प्रस्तुत करते हैं तो ज्ञात होता है कि इन दोनों ग्रन्थों में मुख्य अन्तर दंडक (ग्रहण पाठ) को लेकर है। तिलकाचार्यसामाचारी के अनुसार प्रतिमाग्रहणदंडक निम्न है87. प्रथम दर्शनप्रतिमा- अहं भंते ! तुम्हाणं समीवे पढमं दंसणपडिमं उवसंपज्जामि। तं जहा-दव्वओ खित्तओ कालओ भावओ। दव्वओणं संकाइयाइपारविरहियाइं रायाइछछिंडियो विवज्जियाई मिच्छत्तमोहणीय कम्मक्खओवसमसमुत्थाई सम्मइंसणदलियाई। खित्तओणं इत्थ वा अणत्थ वा। कालओणं मासमेगं। भावओणं जाव गहेणं न गहिज्जामि, जाव छलेणं न छलिज्जामि ताव मम एसा दंसणपडिमा समारोविया, अरिहंतसक्खियं सिद्धसक्खियं साहुसक्खियं देवसक्खियं अप्पसक्खियं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। द्वितीय व्रतप्रतिमा- अहं भंते ! बीयं वयपडिमं उवसंपज्जामि। तं जहादव्वओ खित्तओ कालओ भावओ। दव्वओणं पंचाइयार विसुद्धं थूलं मुसावायं थूलमदिन्नादाणं, थूलंमेहूणं थूलंपरिग्गहं जह गहियभंगेहि य परिहरामि। खित्तओणं इत्थ अणत्थ वा। कालओणं जाव गहेणं नं. ताव मम एसा वयपडिमा समारोविया अरिहंतसक्खियं .............वोसिरामि। तृतीय सामायिकप्रतिमा- अहं भंते ! तुम्हाणं समीवे तइयं सामाइयपडिमं उवसंपज्जामि तं जहा-दव्वओ, खित्तओ, कालओ भावओ। दव्वओणं सामाइय दव्वाइं। खित्तओणं इत्थ अणत्थ वा। कालओणं तिन्नि मासा। भावओणं जाव गहेणं तावमम एसा सामाइय पडिमा सामारोविया अरिहंतसक्खियं .....................वोसिरामि। ___ चतुर्थ पौषधप्रतिमा- अहं भंते! चउत्थिं पोसहपडिमं उवसंपज्जामि तं जहा-दव्वओ, खित्तओ कालओ भावओ। दव्वओंणं पोसह दव्वाइं। खित्तओण इत्थ अणत्थ वा। कालओणं चत्तारि मासा। भावओणं जाव गहेणं ताव मम एसा पोसह पडिमा समारोविया अरिहंतसक्खियं. ................वोसिरामि। शेष प्रतिमाओं के दंडक (पाठ) पूर्ववत् ही समझना चाहिए। आचारदिनकर में वर्णित प्रतिमाग्रहण के पाठ कुछ भिन्न हैं। स्पष्ट बोध के लिए उन पाठों को

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