Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text ________________
उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ... 413
88. आचारदिनकर, पृ. 58
89. महानिशीथ, अ. - 3, पृ. - 54
90. तओ जगगुरूणं जिणिंदाणं पूएकदेसाओ गंधट्ठाऽमिलाण- सियमल्लदामं गहाय सहत्थेणोभयखंधेसु मारोवयमाणेणं गुरूण एवं भाणिअव्वं।
वही पृ. 54
91. संपइ सुत्तमई रत्त-वत्थुच्छुया माला कीरइ ।
92. आचारदिनकर, पृ. 58 ठ 93. महानिशीथ, पृ. 53
94. सेनप्रश्न, पृ. 83, पृ. 25
95. 'सन्मार्ग' पर आधारित, अंक-19, पृ. -167
96. आचारांग, नवां अध्ययन
97. जहा सयंभू उदहीणसेट्ठे, णागेसु वा धरणिंद माहु से |
खोओदए वा रसवेजयंते, तवोवहाणे मुनि वेजयंते ॥
सूत्रकृतांगसूत्र, अंगसुत्ताणि, 1/6/20
98. णव बंभचेरा पण्णत्ता, तं जहा- सत्थपरिण्णा लोगविजओ, सीओसणिज्जं सम्मत्तं आवंती धूतं विमोहो उवहाणसुयं, महापरिण्णा ।
स्थानांग - अंगसुत्ताणि, 9/2
99. समवायांग-अंगसुत्ताणि, 9/3/1 100. विपाकसूत्र - अंगसुत्ताणि, 2/1/35
101. उत्तराध्ययनसूत्र, 11/14 102. महानिशीथ, 3/5-38
103. तिलकाचार्यसामाचारी, पृ. 11-13
विधिमार्गप्रपा पृ.-15
104. सुबोधासामाचारी, पृ.-5-9 105. विधिमार्गप्रपा, पृ. -6-16 106. आचारदिनकर, पृ.-53-59
107. आचारप्रदीप, पृ. 17-19 108. उपदेशप्रासादवृत्ति, पृ. -492-502 109. हीरप्रश्न, पृ. 52
Loading... Page Navigation 1 ... 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540