Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 502
________________ 436... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... करते हुए अपने संयम के साधनों के सिवाय शेष समस्त प्रकार के बाह्य-परिग्रह का त्याग कर देता है, वह उत्तम परिग्रहत्याग-प्रतिमा धारक है। जो पूर्वोक्त प्रतिमाओं का निर्दोष पालन करता हुआ भी इस प्रतिमा का कथंचित् पालन करता है, वह मध्यम है तथा जो पूर्व व्रतों का और इस प्रतिमा का दोष लगाते हुए पालन करता है, वह जघन्य प्रतिमाधारी है।55 10. अनुमतित्याग प्रतिमा- जो पूर्वोक्त प्रतिमाओं का निर्दोष पालन करते हुए समस्त प्रकार के आरम्भ-समारम्भ एवं तत्सम्बन्धी आदेश-निर्देश अनुमति आदि का त्याग कर देता है, वह अनुमतित्याग नामक प्रतिमा उत्तम श्रावक है। जो अपने पुत्रादि को कथंचित् अनुमति प्रदान करता है, वह मध्यम है तथा जो पूर्वोक्त एवं इस प्रतिमा का सदोष पालन करता है, वह जघन्य अनुमतित्यागी है।56 ___11. उद्दिष्टत्याग प्रतिमा- जो पूर्व की सभी प्रतिमाओं का निर्दोष पालन करते हुए अपने निमित्त से बने उद्दिष्ट आहार-पानी का यावज्जीवन के लिए त्याग करता है और उसमें किसी भी प्रकार का दोष नहीं लगने देता है, वह उत्कृष्ट उद्दिष्टत्यागी है। जो कथंचित् रूप से उद्दिष्ट त्याग में दोष लगाता है, वह मध्यम है तथा जो सभी प्रतिमाओं का सदोष पालन करता है, वह जघन्य उद्दिष्टत्यागी है।57 ___ इस तरह प्रत्येक प्रतिमा जघन्य आदि कोटि से स्वीकार की जा सकती है। प्रतिमा पूर्ण होने के बाद क्या करें? ___आचार्य हरिभद्रसूरि कहते हैं58-यदि प्रतिमा के आचरण से आत्मा भावित हो जाए और स्वयं को साधुता के योग्य जान ले, तो दीक्षा ले और यदि साधु बनने के योग्य न लगे, तो गृहस्थ ही बना रहे। इसी अनुक्रम में आत्मा को भावित करके दीक्षा लेने का कारण बताते हुए कहते हैं-अयोग्य व्यक्तियों द्वारा दीक्षा स्वीकार करना नियमत: अनर्थकारी होता है, इसलिए बुद्धिमान् पुरूष को अपनी योग्यता की समीक्षा करने के उपरान्त ही प्रव्रजित होना चाहिए। यह भी सत्य है कि प्रव्रज्या की योग्यता का परीक्षण प्रतिमागत आचरण से ही होता है, क्योंकि देशविरति स्वीकार करने की मनोवृत्ति या अध्यवसाय के बिना प्रव्रज्या के संस्कार निर्मित नहीं होते हैं। पंचाशक प्रकरण में प्रतिमा के महत्व का मूल्यांकन करते हुए बतलाया

Loading...

Page Navigation
1 ... 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540