Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपासकप्रतिमाराधना विधि का शास्त्रीय विश्लेषण... 439
प्रतिमाएँ आचरण की दृष्टि से दुर्गम होने के कारण जघन्यतम एक, दो या तीन दिन पर्यन्त तथा उत्कृष्टतम पाँच, छः आदि ग्यारह मास तक उन-उन प्रतिमाओं का पालन करना चाहिए। इनके प्रतिपूर्ण पालन में साढ़े पाँच वर्ष का समय लगता है।
प्रतिमा का जघन्यकाल एक दिन क्यों ?
यह बिन्दु विचारणीय है कि पाँचवीं से लेकर ग्यारहवीं प्रतिमा का जघन्य कालमान एक दिन क्यों रखा गया है ? इस सम्बन्ध में अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि वह प्रतिमाधारी प्रतिमा स्वीकार करते ही कालगत हो सकता है अथवा श्रमण बन सकता है। इस दृष्टिकोण से एक दिन, दो दिन आदि का निर्देश है, अन्यथा पाँचवीं प्रतिमा सम्पूर्ण पाँच मास यावत् ग्यारहवीं प्रतिमा सम्पूर्ण ग्यारह मास नियम से पालन करने योग्य है।
प्रतिमोपासक के कृत्य
प्रसिद्ध वैधानिक ग्रन्थ तिलकाचार्यसामाचारी में यह वर्णित है कि दर्शनप्रतिमाधारी श्रावक एक महीने तक पार्श्वस्थ आदि साधुओं को वन्दन नहीं करें। दिवस में तीन बार जिनप्रतिमा की पूजा करें, त्रिकाल चैत्यवन्दन करें तथा राजा आदि का आग्रह विशेष होने पर भी सम्यक्त्वव्रत भंग नहीं करें।
• व्रत-प्रतिमाधारी उपासक दो महीने तक यथागृहीत भंगपूर्वक पाँच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों एवं चार शिक्षाव्रतों का निर्दोष पालन करें। • सामायिक - प्रतिमाधारी तीन माह तक उभय संध्याओं में सामायिक करें। • पौषध- प्रतिमाधारी चार माह तक अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा एवं अमावस्या-इन पर्वतिथियों में चतुर्विध- आहार के त्याग पूर्वक नियम से पौषध करें।
• पाँचवी प्रतिमा धारण करनेवाला श्रावक पाँच महीनों तक रात्रिभोजन का त्याग करें, स्नान नहीं करें, दिन में ब्रह्मचर्य का सर्वथा पालन करें और रात्रि के लिए अब्रह्मसेवन का परिमाण करें। पौषध के दिनों में सम्पूर्ण रात्रिपर्यन्त कायोत्सर्ग करें।
• छठवीं प्रतिमा धारण करने वाला श्रावक छः महीने तक ब्रह्मचर्य का पूर्णतः पालन करें।
• सातवीं प्रतिमा धारण करनेवाला साधक सात महीने तक सचित्त वस्तुओं