Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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420... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... 4. मैं दूसरे भिक्षुओं को अशन आदि न लाकर दूंगा और न ही उनके द्वारा
लाया हुआ स्वीकार करूंगा। 5. मैं अपनी आवश्यकता से अधिक, अपनी आचार-मर्यादा के अनुसार
ग्रहणीय तथा स्वयं के लिए लाए हए आहार आदि के द्वारा निर्जरा के उद्देश्य से उन साधर्मिकों की सेवा करूंगा अथवा आचारांग के छठवें द्यूताध्ययन के पाँच द्यूत, पाँच प्रतिमा के रूप में निर्दिष्ट किए जा सकते हैं-निजकबूत, कर्मद्यूत, शरीर उपकरणद्यूत, गौरवद्यूत और उपसर्गद्यूत। • आचारचूला में सैंतीस प्रतिमाएँ प्रज्ञप्त हैं
चार संस्तारकप्रतिमा, चार वस्त्रप्रतिमा, चार पात्रप्रतिमा, सात अवग्रहप्रतिमा, चार स्थानप्रतिमा।
• स्थानांगसत्र में सोलह प्रतिमाएँ, चार-चार के भेद से निर्दिष्ट हैं1. समाधिप्रतिमा 2. उपधानप्रतिमा 3. विवेकप्रतिमा 4. व्युत्सर्गप्रतिमा। 1. भद्रा 2. सुभद्रा 3. महाभद्रा 4. सर्वतोभद्रा। 1. क्षुल्लकप्रश्रवण 2. महत्प्रश्रवण 3. यवमध्या 4. वज्रमध्या। 1. शय्याप्रतिमा 2. वस्त्रप्रतिमा 3. पात्रप्रतिमा 4. स्थानप्रतिमा। • व्यवहारसूत्र में दत्ति तप की चार प्रतिमाएँ कही गई हैं1. सप्तसप्तमिका 2. अष्टअष्टमिका 3. नवनवमिका 4. दसदसमिका। • दो मोक-प्रतिमा- 1. क्षुल्लकमोकप्रतिमा 2. महत्मोकप्रतिमा। • दो चन्द्र-प्रतिमा-1. यवमध्या 2. वज्रमध्या।
यद्यपि ये चारित्र प्रतिमाएँ हैं, किन्तु विशिष्ट श्रुतवान् मुनि के होती हैं, इसलिए इन्हें श्रृतप्रतिमा कहा गया है।
चारित्रसमाधि प्रतिमा पाँच प्रकार की कही गई है- 1. सामायिक 2. छेदोपस्थापनीय 3. परिहारविशुद्धि 4. सूक्ष्मसंपराय और 5. यथाख्यातचारित्र।
इस प्रकार समाधिप्रतिमा कुल 5+37+16+4+2+2=66+5=71 प्रकार की होती है।
2. उपधान प्रतिमा- तप का विशेष प्रयोग करना, जैसे मुनि की तप संबंधी बारह प्रतिमाएँ तथा उपासक की ग्यारह प्रतिमाएँ उपधान प्रतिमा है।
3. विवेक प्रतिमा- क्रोध आदि न करने का विवेक रखना विवेक प्रतिमा है। इस प्रतिमा के अभ्यासकाल में जड़ और चेतन की भिन्नता का अनुचिंतन