Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...293
मज्झे
5. अणाघाडे
| उच्चारे पासवणे अणहियासे 6. अणाघाडे
पासवणे | अणहियासे निम्न छः मांडला पौषधशाला से सौ कदम दूर वाले स्थान को आश्रित करके करना चाहिए1. अणाघाडे आसन्ने | उच्चारे पासवणे | अणहियासे 2. अणाघाडे आसन्ने पासवणे | अणहियासे 3. अणाघाडे
उच्चारे | पासवणे | अणहियासे 4. अणाघाडे मज्झे पासवणे अणहियासे 5. अणाघाडे
उच्चारे | पासवणे | अणहियासे 6. अणाघाडे दूरे पासवणे अणहियासे प्रतिक्रमण विधि ___पौषधवाही मांडलाविधि की क्रिया पूर्ण करने के बाद दैवसिक प्रतिक्रमण करें। प्रतिक्रमण करने के पश्चात अस्वाध्याय काल न आए, तब तक स्वाध्याय में लीन रहें। रात्रिकसंस्तारक पौरुषी विधि ___ यह विधि रात्रिभर के लिए एक प्रकार से सागारी संथारा ग्रहण करने के निमित्त की जाती है। इस विधि के अन्त में 'राईसंथारा' नाम का पाठ बोला जाता है। इस पाठ के स्मरणपूर्वक आहार शरीर उपधि का सम्पूर्ण रात्रि के लिए त्याग किया जाता है। इसी के साथ एकत्वभावना का चिन्तन करते हुए वैराग्यभावना को पुष्ट बनाया जाता है। कदाच नश्वर देह का वियोग हो जाए, तो समाधिमरण प्राप्त किया जा सके। पौषधव्रती, संयमी एवं उपधानवाही के सिवाय सामान्य साधकों के लिए भी यह विधि निश्चित रूप से करणीय है। ___ यह विधि रात्रि के प्रथम प्रहर के अन्त में की जाती है। यदि हम वैधानिक एवं प्रामाणिक-ग्रन्थों के सन्दर्भ में इस विधि को ढूंढें, तो विधिमार्गप्रपा के अतिरिक्त मध्यकालीन ग्रन्थों तक किसी में इस विधि का स्वरूप उपलब्ध नहीं होता है। इस विधि के सम्बन्ध में विधिमार्गप्रपा कहती है कि राईसंथाराविधि