Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 470
________________ 404... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... वासदान की अपेक्षा- मालारोपण के दिन अनुज्ञा के निमित्त मालाग्राही के मस्तक पर कितना वासदान किया जाना चाहिए ? इस सम्बन्ध में तिलकाचार्य ने कोई निर्देश नहीं किया है। महानिशीथसूत्र,176 सुबोधासामाचारी177 और आचारदिनकर78 में मालाग्राही को कुछ अभिग्रहादि नियम दिलवाने के बाद एक साथ सात गन्ध की मुट्ठियाँ प्रक्षेपित करने का निर्देश है। उसके बाद ही पहनाई जाने वाली माला को जिनप्रतिमा के चरणों पर स्थापित करते हैं, जबकि विधिमार्गप्रपा में अनुज्ञा के निमित्त दी जाने वाली प्रदक्षिणा के समय एक-एक करके सात गंधमुट्ठियाँ प्रक्षेपित करने का वर्णन है।179 अनुशिष्टिवचन की अपेक्षा- मालारोपण के दिन मालाग्राही को लक्ष्य में रखकर सारगर्भित उपदेश दिया जाता है। इस सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न गाथा पाठ देखने को मिलते हैं। तिलकाचार्यकृत सामाचारी में भक्तिः श्री वीतरागे ..................' 'आतंकः पातकेभ्यो ...................आदि 5 गाथाएँ वर्णित हैं।180 सुबोधासामाचारी में 'परमपयपुरीपत्थिये', इत्यादि आठ गाथाएँ उसके बाद 'तत्तोजिणपडिमाए' से लेकर 'इत्तिसिज्झंति' पर्यन्त ग्यारह गाथाएँ तीन बार बोले जाने का निर्देश है।181 विधिमार्गप्रपा में मानदेवसूरिकृत 54 गाथाओं की 'उपधानविधि' एवं 'सावज्जकज्जवज्जण' आदि 9 गाथाओं की 'मालारोपण अनुशिष्टि' कहे जाने का उल्लेख है।182 आचारदिनकर में 'जिणपडिमाए पूआदेसाओ', आदि ग्यारह गाथाओं और 'भो-भो देवाणुप्पिया' आदि महानिशीथसूत्र की बीस गाथाओं की देशना करने का वर्णन है।183 इन उपदेशमूलक गाथाओं में संख्या भेद होने पर भी अर्थदृष्टि से साम्य है। प्रकार की अपेक्षा- खरतरगच्छ परम्परा उपधान के सात प्रकार मानती हैं और तपागच्छ आदि परम्परा में उपधान के छ: प्रकार माने गए हैं। यह मतभेद सूत्र की संख्या को लेकर नहीं है, अपितु उन सूत्रों को वहन करने की अपेक्षा से है। खरतरगच्छ आम्नाय में 'श्रुतस्तव' को छठवां और 'सिद्धस्तव' को सातवाँ उपधान स्वीकारा गया है, जबकि तपागच्छीय सामाचारी में श्रुतस्तव एवं सिद्धस्तव-दोनों को युगपद मानकर छठवें उपधान की कोटि में रखा गया है।


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