Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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408... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
समाहारत: भारतीय संस्कृति की लगभग सभी परम्पराओं में इसका अस्तित्व किसी न किसी रूप में अब भी मौजूद है, जिसे आज गुरूकुल, छात्रावास, बोर्डिंग आदि के रूप में जाना जाता है। सन्दर्भ सूची 1. उपधान का महत्व, ले. प्रवर्तिनी सज्जन श्री 2. आचारांगनियुक्ति, गा.-302, 1/9/1 3. आचारांगटीका, उद्धृत-सन्मार्ग, सन् 2003, अंक 13, पृ.93 4. स्थानांग, 1/2/1 की टीका, उद्धृत-वही, पृ.-92 5. भगवतीटीका, उद्धृत-वही, पृ.-92 6. दशाश्रुतस्कंधटीका, उद्धृत-वही, पृ.93. 7. उपदधाति पुष्टिं नयति अनेनेत्युपधानं तपः यद् यत्राध्ययने।
व्यवहारभाष्य, 62 की टीका 8. तीए दुग्गतीए पतंतमप्पाणं, जेण धारेति तं उवहाणं भन्नति।
____ निशीथसूत्र, अमरमुनि, गा.15 की चूर्णि 9. उत्तराध्ययन, अ.-11 की वृत्ति, उद्धृत-सन्मार्ग, पृ.-83 10. विनयबहुमानाभ्यां चतुर्थभंगयोपदधातीति उपधानम्।
धर्मसंग्रह, पहला अधिकार, उद्धृत-वही पृ. 93 11. प्रवचनसारोद्धार, छठवें द्वार की टीका, पृ.-169 12. उपधान आगमोचितं तप: कर्म। आचारदिनकर, पृ.-53 13. उपधीयते ज्ञानादि परीक्ष्यते अनेनेत्युपधानम्, अथवा चतुर्विधसंवरसमाधिरूपायां सुखशय्यायां उत्तमत्वेनेच्छीर्षकस्थाने उपधीयत इत्युपधानम्।
वही, पृ.-53 14. वही, पृ.-53 15. उपधानं च श्रुताराधनार्थं यथोद्दिष्टस्तपो विशेष:- 'उप-समीपे धीयते-क्रियते सूत्रादिकं येन तपसा तदुपधानमिति व्युत्पत्तेः'।
आचारप्रदीप, पृ.-17 16. उपदेशप्रासादवृत्ति, पृ.-492 17. स्थानांगसूत्र, मधुकरमुनि, 5/2/124 18. 'सन्मार्ग' पर आधारित, सन्-2004, अंक-19, पृ.-202-207 19. आचारप्रदीप, पृ.-17