Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 444
________________ 378... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... करना चाहिए।120 इसी प्रकार दूसरे दिन दो पद से युक्त एक आलापक वाला, पाँच अक्षर परिमाण 'नमोसिद्धाणं' नामक दूसरा अध्ययन एक आयंबिलपूर्वक पढ़ना चाहिए।121 इस प्रकार क्रमश: पाँचवां अध्ययन पाँचवें दिन आयंबिलपूर्वक पढ़ना चाहिए,122 अर्थात नमस्कारमंत्र के पाँच अध्ययन निरन्तर पाँच दिनों तक पाँच आयंबिल-तप द्वारा ग्रहण किए जाना चाहिए। इसी प्रकार तीन आलापक और पैंतीस अक्षर परिमाणवाली ‘एसोपंचनमुक्कारो' आदि तीन चूलिकाएँ छठवें, सातवें, आठवें दिन आयंबिलपूर्वक ग्रहण करनी चाहिए।123 अन्त में अट्ठम (तीन उपवास) करके नमस्कारमन्त्र की अनुज्ञा ग्रहण करनी चाहिए।124 इरियावहि उपधान- गौतमस्वामी पुन: प्रश्न करते हैं- हे भगवन्! इरियावहि उपधान किस विधिपूर्वक करना चाहिए ? इसका प्रत्युत्तर देते हुए प्रभु ने कहा-जिस प्रकार पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध को ग्रहण किया गया, उसी प्रकार इरियावहिसूत्र ग्रहण करना चाहिए। यानी प्रथम पाँच उपवास, उसके बाद आठ आयंबिल और अन्त में अट्ठम करके इसे करना चाहिए।125 शक्रस्तव उपधान- शक्रस्तव (णमुत्थुणं सूत्र) एक अट्ठम और बत्तीस आयंबिलपूर्वक पढ़ना चाहिए।126 चैत्यस्तव उपधान- अरिहंतस्तव (अरिहंतचेइयाणं सूत्र) एक उपवास और तीन आयंबिल द्वारा पढ़ना चाहिए।127 चतुर्विंशतिस्तव उपधान- चतुर्विंशतिस्तव (लोगस्स सूत्र) एक अट्ठम और पच्चीस आयंबिलपूर्वक ग्रहण करना चाहिए।128 श्रुतस्तव उपधान- श्रुतस्तव (पुक्खरवरदी सूत्र) एक उपवास और पाँच आयंबिलपूर्वक ग्रहण करना चाहिए।129 उपधान प्रवेश विधि प्रचलित परम्परा के अनुसार उपधान संबंधी विधि-विधान निम्नानुसार है खरतरगच्छ सामाचारी के अनुसार जिस व्यक्ति को उपधानतप में प्रवेश करना है, वह उपधान प्रवेश के दिन से पूर्व दिन की संध्या में भोजन करने के बाद वाचनाचार्य के समीप आकर, आसन(कटासन) बिछाएँ • फिर चरवला और मुखवस्त्रिका को हाथों में धारण कर एक खमासमणसूत्रपूर्वक वन्दन कर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। उसके बाद प्रथम उपधान करने वाला उपधानवाही एक खमासमण

Loading...

Page Navigation
1 ... 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540