Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 459
________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ... 393 सोधि संदिसाहुं', 'इच्छा. संदि.! सोधि करेमि ' - ऐसा कहकर गुरू से आत्मशुद्धि करने की अनुमति प्राप्त करें। • फिर यदि उपधानवाही खरतरगच्छ की परम्परा वाला हो, तो तीन और तपागच्छ परम्परा वाला हो, तो एक ‘नमस्कारमन्त्र’ का स्मरण करें। उसके बाद 'इच्छकारी भगवन्! पसाय करी आलोचना करावोजी' - ऐसा कहकर गुरू मुख से आलोचना ग्रहण करें | 161 यहाँ आलोचनादाता गुरू अपने गच्छ की आचरणा के अनुसार आलोचना देते हैं। अधिकांशतः आलोचना पत्रक पर ही आलोचना लिखकर दे देते हैं। उपधान निक्षेप (निर्गमन) विधि • जिस दिन उपधान तप पूर्ण हो रहा हो, उस दिन सायंकाल चतुर्विध आहार का प्रत्याख्यान करके शिष्य (उपधानवाही) गुरू के समीप आएं। फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। • उसके बाद एक खमासमण देकर "इच्छा. संदि. भगवन्! पढमउवहाण पंचमंगलमहासुयक्खंध- निक्खेवनिमित्तं 162 मुहपत्तिं पडिलेहेमि' - हे भगवन् ! आपकी इच्छापूर्वक प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध से बाहर निकलने के निमित्त मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करूँ - ऐसा निवेदन करें। तब गुरू 'पडिलेहेह' शब्द बोलकर अनुमति प्रदान करें । तदनन्तर उपधानवाही मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर दो बार द्वादशावर्त्तवन्दन करें। • फिर कहे - "पढम उवहाण- पंचमंगलमहासुयक्खंधतवं उक्खिवह"प्रथम उपधानयोग्य सूत्र से बाहर करिए। तब गुरू 'उक्खिवामो' कहकर प्रथम सूत्रोपधान से बाहर करने की अनुमति प्रदान करते हैं। • तत्पश्चात् उपधानवाही एक खमासमण देकर निवेदन करें- "इच्छा. संदि. भगवन्! पढमउवहाण पंचमंगलमहासुयक्खंधतव निक्खिवणत्थं काउस्सग्गं करावेह' - हे भगवन् ! आप इच्छापूर्वक प्रथम उपधान से बाहर करने के लिए कायोत्सर्ग करवाईए। गुरू कहे- 'करावेमो' - कायोत्सर्ग करवाता हूँ। उसके बाद उपधानवाही 'इच्छं' कहकर, पुनः एक खमासमण कर 'पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध' नामक प्रथम उपधान से बाहर निकलने के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ' - ऐसा बोलकर एक 'नमस्कारमन्त्र' का चिन्तन करें, फिर प्रकट में एक नमस्कारमन्त्र कहे। • उसके बाद उपधानवाही पुनः एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन्! पढमउवहाण- पंचमंगलमहासुयक्खंधतव निक्खिवणत्थं


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